अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मातृ दिवस और पितृ दिवस: कैलेंडर पर टँगे शब्द

 

मातृ दिवस और पितृ दिवस-ये दो ऐसे ‘विशेष’ दिन हैं, जिनका आविष्कार शायद उस महान आत्मा ने किया होगा, जिसने इंसानी फ़ितरत को बख़ूबी समझा। यह फ़ितरत, जो पूरे साल माँ-बाप को ‘फ़ॉर ग्रांटेड’ लेने में कोई कसर नहीं छोड़ती, लेकिन साल में एक-एक दिन के लिए अचानक ‘संस्कारी’ और ‘कर्तव्यनिष्ठ’ हो उठती है। क्या ख़ूब तमाशा है! लगता है, हमने अपनी भावनाओं को भी कैलेंडर के पन्नों पर अंकित करवा दिया है, ताकि साल के बाक़ी 363 दिन हमें याद ही न करना पड़े कि हमारे जीवन में इन दो शख़्सियतों का क्या स्थान है। 

मातृ दिवस: एक दिन की ‘रानी’ और 364 दिन की ‘नौकरानी‘?

आह, मातृ दिवस! इस दिन सुबह उठते ही सोशल मीडिया की टाइमलाइन पर शुभकामनाओं की ऐसी बाढ़ आती है, मानो माँओं का राष्ट्रीय त्योहार हो। हर बेटा-बेटी अचानक से कवियों और दार्शनिकों में तब्दील हो जाता है। “मेरी प्यारी माँ, आप जैसा कोई नहीं!”, “माँ, आप मेरी दुनिया हो!”, “मॉम, यू आर द बेस्ट!”ऐसे जुमले देखकर लगता है, कहीं हमारी माँएँ इस बात से कनफ़्यूज़ न हो जाएँ कि उन्हें वाक़ई में इतना सम्मान मिल रहा है, या ये बस ‘इंटरनेट-ज्ञान’ है। 

इस दिन माँ को सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक ‘वीआईपी ट्रीटमेंट’ मिलता है। बच्चे बड़े प्यार से नाश्ता बनाएँगे (भले ही वो जल जाए या नमक ज़्यादा हो जाए), पिताजी बेचारे भी इस ‘क्रांति’ में अपना योगदान देंगे, क्योंकि उन्हें पता है, अगर उन्होंने माँ को ख़ुश न किया, तो अगले दिन से उनकी अपनी ख़ैर नहीं। गिफ़्ट्स की भरमार लग जाती है—कोई साड़ी, कोई कुकिंग सेट, कोई मोबाइल फोन (ताकि माँ और ज़्यादा रील्स देख सकें)। माँ भी बड़े चाव से स्वीकार करती है, भले ही उस साड़ी को अलमारी में सबसे निचले शेल्फ़ पर जगह मिले, या कुकिंग सेट में दाल-चावल ही पकाने हों। 

मगर इस ‘एक दिवसीय उत्सव’ का असली व्यंग्य तो तब शुरू होता है, जब मातृ दिवस का सूरज ढलता है। अगले दिन से माँ फिर वही ‘होम मैनेजर‘, ‘पर्सनल शेफ़्फ़‘, ‘क्लीनर‘, ‘धोबिन’ और ‘24 घंटे का अटेंशन सीकर’ बन जाती हैं। “मम्मी, वो मेरा स्कूल बैग कहाँ है?”, “दाल में नमक क्यों कम है?”, “मेरे कपड़े क्यों नहीं धोए?”, “टीवी बंद करो, पूरा दिन क्या देखती रहती हो?” ये वो जुमले हैं, जो मातृ दिवस के अगले 364 दिन तक माँ के कानों में शहद की बजाय नींबू बनकर टपकते हैं। ऐसा लगता है, जैसे मातृ दिवस कोई ‘सरकारी स्कीम’ हो, जिसका लाभ सिर्फ़ 24 घंटे के लिए मिलता है, और उसके बाद आप फिर अपनी पुरानी ‘औक़ात’ पर लौट आते हैं। वो ‘सुपरमॉम’ का ख़िताब तो बस उस एक दिन के लिए मिला था, बाक़ी दिन तो वो ‘काम वाली बाई’ की भूमिका में ही नज़र आती हैं। 

पितृ दिवस: एटीएम का आभार या ‘कुछ नहीं चाहिए’ का दोहराव?

और अब बात करते हैं पितृ दिवस की। ये दिन थोड़ा कम शोरगुल वाला होता है, क्योंकि पिताजी स्वभाव से ही थोड़े ‘शांत’ क़िस्म के होते हैं। यहाँ सोशल मीडिया पर भी तस्वीरें थोड़ी कम और कैप्शन थोड़े ‘गंभीर’ होते हैं, “मेरे हीरो पापा”, “आपसे ही सब सीखा”, “धन्यवाद पापा”। बच्चे इस दिन भी अपनी ‘औपचारिकता’ निभाते हैं। कोई पिताजी को टाई देगा, कोई शर्ट, और कुछ तो सीधे उनसे पूछ लेंगे, “पापा, क्या चाहिए आपको?” और पिताजी का वही चिर-परिचित जवाब आएगा, “अरे बेटा, मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस तुम ख़ुश रहो।”

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी

सामाजिक आलेख

दोहे

गीत-नवगीत

कविता

कविता - हाइकु

कविता-मुक्तक

कविता - क्षणिका

सांस्कृतिक आलेख

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

लघुकथा

स्वास्थ्य

स्मृति लेख

खण्डकाव्य

ऐतिहासिक

बाल साहित्य कविता

नाटक

साहित्यिक आलेख

रेखाचित्र

चिन्तन

काम की बात

काव्य नाटक

यात्रा वृत्तांत

हाइबुन

पुस्तक समीक्षा

हास्य-व्यंग्य कविता

गीतिका

अनूदित कविता

किशोर साहित्य कविता

एकांकी

ग़ज़ल

बाल साहित्य लघुकथा

व्यक्ति चित्र

सिनेमा और साहित्य

किशोर साहित्य नाटक

ललित निबन्ध

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं