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बाल कविताएँ – 001 : डॉ. सुशील कुमार शर्मा

1.
चंदा मामा
पहने हैं
चाँदनी का  
ढीला पजामा।
2.
सूरज दादा
ठण्ड में ओढ़े
कोहरे का लबादा।
3.
आसमान में तारे
जैसे
ज़मीन पर
बिखरे हों
कंचे हमारे।
4.  
हम कितने बजे उठें?
हम क्या खाएँ?
हम क्या पहनें?
हम कैसे दिखें?
हम कैसे उठें, कैसे बैठें?
हम क्या पढ़ें क्या लिखें?
कब खेलें?
कब सोएँ?
ये भी आप सभी बड़े तय करते हैं।
अनुशासन के बेंत
सिर्फ़ बच्चों पर ही चलते हैं।
5.  
सुतली बम
अनारदाने
चकरी
रॉकेट
ढेर सारे  के पटाखे।
ज़हरीली हवा
प्रदूषण
कोरोना
दमा के धमाके।
6.
घोर घोर रानी
सूखता पानी
मत काटो पेड़
मत लूटो रेत
नहीं तो
बन जाएगी धरती
नानी की कहानी।

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