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ज़िन्दगी सरल है पर आसान नहीं

शर्मा जी बहुत सीधे साधे एवम सरल इंसान थे न कोई शौक़ न कोई बुरी आदत जो ईश्वर देता उस पर संतोष कर लेने वाले उन्हें अपनी ज़िन्दगी से कोई शिकायत नहीं थी। 

पंडताई से जितना आ जाता है उससे गुज़ारा चलता रहता है। 

“बाबूजी हमें स्कूल की फ़ीस भरनी है पैसे चाहिए,” बेटे ने सहमते हुए कहा। 

“बाबूजी हमें भी पुस्तकें चाहिए हर दिन डाँट पड़ती है,”बेटी ने भी अपनी माँग रख दी। 

“गेहूँ भी ख़त्म हो गया है,” पत्नी की आवाज़ आई। 

“बेटा मेरी दवाई भी ख़त्म हो गई हैं,” पिता की काँपती आवाज़ आई। 

“बेटा खाना खाले,” माँ की आवाज़ सुनकर शर्मा जी मुस्कुराए। 

सोचने लगे ज़िन्दगी सरल है पर आसान नहीं। 

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