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गुरु पर दोहे – 01

 

गुरु अमृतमयी जगत में, बाक़ी सब विषबेल।
सतगुरु संत अनंत हैं, प्रभु से कर दें मेल।
 
गीली मिट्टी अनगढ़ी, हमको गुरुवर जान।
ज्ञान प्रकाशित कीजिए, बुद्धि ज्ञान आधान।  
 
गुरु बिन ज्ञान न होत है, गुरु बिन दिशा अजान।
गुरु बिन इन्द्रियाँ न सधें, गुरु बिन सधे न ध्यान।
 
गुरु मन में बैठत सदा, गुरु है भ्रम का काल,
गुरु अवगुण को मेटता, मिटें सभी भ्रमजाल।
 
शिष्य वही जो सीख ले, गुरु का ज्ञान अगाध।
भक्तिभाव मन में रखे, चलता चले अबाध।
 
गुरु ग्रंथन का सार है, गुरु है प्रभु का नाम।
गुरु आध्यात्मिक ज्योति है, गुरु हैं चारों धाम।
 
अंधकार से खींचकर, मन में भरे प्रकाश।
तमस निशा को बदल दे, करे स्वच्छ आकाश।
 
लोभ मोह माया सभी, मैले करते रूप।
गुरु तन मन धोवे सदा, जैसे उज़्ज़वल धूप।
 
गुरु कृपालु हो शिष्य पर, पूरन हों सब काम।
गुरु की सेवा से मिले, परम  ब्रह्म का धाम।
 
गुरु अनंत तक जानिए, गुरु का ओर न छोर।
गुरु प्रकाश का पुंज है, निशा बाद का भोर।

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