अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

भगवान परशुराम: एक बहुआयामी व्यक्तित्व एवं समकालीन प्रासंगिकता

 

(परशुराम जयंती पर विशेष आलेख) 

 

भगवान परशुराम, विष्णु के छठे अवतार, भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं में एक अद्वितीय और प्रभावशाली स्थान रखते हैं। वे न केवल एक पराक्रमी योद्धा और अद्वितीय शस्त्र विद्या के ज्ञाता थे, बल्कि उनमें एक तपस्वी का वैराग्य, एक ब्राह्मण का तेज और अन्याय के विरुद्ध प्रखर आवाज़ भी समाहित थी। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है, जो उन्हें अन्य अवतारों से विशिष्ट बनाता है। परशुराम जयंती के अवसर पर उनके इस बहुआयामी स्वरूप और आज के समय में उनकी प्रासंगिकता पर विचार करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 

एक योद्धा और शस्त्र विद्या के अद्वितीय ज्ञाता:

भगवान परशुराम का नाम उनके अचूक अस्त्र ‘परशु’ (फरसा) से जुड़ा है, जिसे उन्होंने भगवान शिव से प्राप्त किया था। उनकी शस्त्र विद्या का कौशल अद्वितीय था। वे धनुर्विद्या, गदा युद्ध और विशेष रूप से परशु चलाने में अतुलनीय थे। पौराणिक कथाओं में उनके युद्ध कौशल के अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनमें उनका पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रिय विहीन करना सबसे प्रसिद्ध है। इस कृत्य को अक्सर अन्याय, अत्याचार और अहंकार के विरुद्ध उनके प्रचंड क्रोध और न्याय की स्थापना के संकल्प के रूप में देखा जाता है। यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि उनका यह क्रोध व्यक्तिगत द्वेष से प्रेरित नहीं था, बल्कि धर्म और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए था। उन्होंने अत्याचारी और धर्म के मार्ग से भटक चुके शासकों को दंडित किया ताकि समाज में शान्ति और न्याय स्थापित हो सके। 

एक तपस्वी और ब्राह्मण का तेज:

भगवान परशुराम केवल एक योद्धा ही नहीं थे, बल्कि उनमें एक ब्राह्मण का तेज और तपस्वी का वैराग्य भी था। उनके पिता जमदग्नि एक महान ऋषि थे और माता रेणुका एक तपस्विनी। इस परिवेश में पले-बढ़े परशुराम में स्वाभाविक रूप से ज्ञान, तपस्या और धार्मिकता के गुण विद्यमान थे। उन्होंने कठिन तपस्याएँ कीं और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। उनका जीवन भौतिक सुखों से दूर, सादा और संयमित था। वन में उनका निवास और सांसारिक मोह-माया से उनकी विरक्ति उनके तपस्वी स्वभाव को दर्शाती है। उनका तेज और वाणी में ब्राह्मणों जैसी प्रखरता थी, जो उन्हें सत्य और न्याय के लिए निर्भीकता से बोलने की शक्ति प्रदान करती थी। 

न्यायप्रिय और दानवीर:

भगवान परशुराम का चरित्र न्यायप्रियता और दानवीरता के गुणों से भी ओतप्रोत है। उन्होंने हमेशा धर्म और न्याय के पक्ष में खड़े रहे और अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद की। उनका प्रसिद्ध कृत्य, पृथ्वी को दान करना, उनके त्याग और दानवीरता का उत्कृष्ट उदाहरण है। कथाओं के अनुसार, पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने के बाद उन्होंने पूरी पृथ्वी कश्यप ऋषि को दान कर दी और स्वयं वन में निवास करने चले गए। यह घटना उनके अहंकारशून्य और त्यागपूर्ण स्वभाव को दर्शाती है। 

पौराणिक कथाओं में उनकी भूमिका:

भगवान परशुराम की उपस्थिति रामायण और महाभारत दोनों प्रमुख हिंदू महाकाव्यों में मिलती है, जो उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को और उजागर करती है। रामायण में, सीता स्वयंवर के दौरान भगवान राम द्वारा शिव धनुष तोड़ने पर उनका क्रोधित होना और बाद में राम की दिव्यता को स्वीकार करना उनके न्यायप्रिय लेकिन सत्य को समझने वाले स्वभाव को दर्शाता है। महाभारत में, वे भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण के गुरु के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कर्ण को उन्होंने शस्त्र विद्या सिखाई, लेकिन जब उन्हें कर्ण के क्षत्रिय होने का पता चला, तो उन्होंने उसे अंतिम समय में अपनी विद्या भूल जाने का श्राप दिया। यह घटना उनके नियमों के प्रति कठोरता और सत्यनिष्ठा को दर्शाती है। 

समकालीन प्रासंगिकता:

आज के समय में भगवान परशुराम के जीवन और शिक्षाओं की प्रासंगिकता कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है:

  • अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज़: वर्तमान समाज में भी अन्याय, भ्रष्टाचार और अत्याचार व्याप्त हैं। भगवान परशुराम का जीवन हमें इन बुराइयों के ख़िलाफ़ निर्भीकता से आवाज़ उठाने और न्याय के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देता है। 
  • शक्ति का सदुपयोग: भगवान परशुराम की शक्ति का उपयोग हमेशा धर्म और न्याय की रक्षा के लिए था। यह हमें सिखाता है कि शक्ति का उपयोग अहंकार या व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि समाज के कल्याण और कमज़ोरों की रक्षा के लिए किया जाना चाहिए। 
  • अहंकार का त्याग: उनका पृथ्वी दान का कृत्य अहंकार त्यागने और निःस्वार्थ सेवा करने का महत्त्वपूर्ण संदेश देता है। आज के भौतिकवादी युग में, यह शिक्षा हमें त्याग और सादगी के महत्त्व को समझने में मदद कर सकती है। 
  • कर्त्तव्य और धर्म का पालन: भगवान परशुराम ने हमेशा अपने कर्त्तव्यों का निष्ठा से पालन किया और धर्म के मार्ग पर चले। उनका जीवन हमें अपने कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक रहने और धार्मिक मूल्यों का पालन करने की प्रेरणा देता है। 
  • ज्ञान और शक्ति का समन्वय: उनके व्यक्तित्व में ब्राह्मण का ज्ञान और क्षत्रिय की शक्ति का अद्भुत समन्वय था। यह हमें जीवन के हर क्षेत्र में ज्ञान और कर्म के संतुलन को बनाए रखने का महत्त्व सिखाता है। 

निष्कर्ष:

भगवान परशुराम एक असाधारण व्यक्तित्व थे, जिनमें वीरता, त्याग, ज्ञान और न्याय जैसे अनेक गुण एक साथ विद्यमान थे। उनका जीवन हमें अन्याय के विरुद्ध लड़ने, शक्ति का सदुपयोग करने, अहंकार त्यागने और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। परशुराम जयंती केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि भगवान परशुराम के बहुआयामी व्यक्तित्व और उनकी शाश्वत शिक्षाओं को स्मरण करने और अपने जीवन में उतारने का एक अवसर है। आज के जटिल और चुनौतीपूर्ण समय में, उनके आदर्श हमें एक न्यायपूर्ण, धर्मनिष्ठ और सशक्त समाज के निर्माण की दिशा में मार्गदर्शन कर सकते हैं। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

दोहे

कविता

सांस्कृतिक आलेख

नाटक

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

गीत-नवगीत

कविता-मुक्तक

कहानी

सामाजिक आलेख

काव्य नाटक

लघुकथा

कविता - हाइकु

यात्रा वृत्तांत

हाइबुन

पुस्तक समीक्षा

चिन्तन

कविता - क्षणिका

हास्य-व्यंग्य कविता

गीतिका

बाल साहित्य कविता

अनूदित कविता

साहित्यिक आलेख

किशोर साहित्य कविता

एकांकी

स्मृति लेख

ग़ज़ल

बाल साहित्य लघुकथा

व्यक्ति चित्र

सिनेमा और साहित्य

किशोर साहित्य नाटक

ललित निबन्ध

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं