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कृष्ण: अनंत अपरिभाषा


(जन्माष्टमी पर आलेख-सुशील शर्मा)

 

कृष्ण! यह सिर्फ़ एक नाम नहीं, बल्कि एक संपूर्ण ब्रह्मांड है, जिसमें प्रेम, ज्ञान, वैराग्य, और कर्त्तव्य की अनंत धाराएँ प्रवाहित होती हैं। कृष्ण का व्यक्तित्व इतना विशाल और बहुआयामी है कि उसे किसी भी एक परिभाषा में समेटना असंभव है। जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर, आइए कृष्ण के उन विभिन्न रूपों को समझने का प्रयास करें, जो उन्हें हर युग में प्रासंगिक और अपरिभाषित बनाए रखते हैं। 

प्रेम और ज्ञान का संगम

जब हम कृष्ण के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले प्रेम का विचार मन में आता है। वे गोपियों और राधा के साथ प्रेम की पराकाष्ठा हैं। उनका प्रेम सिर्फ़ शारीरिक आकर्षण नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। उनकी बाँसुरी की धुन में पूरा ब्रजमंडल खो जाता था। यह प्रेम की वह गागर है, जो कभी ख़ाली नहीं होती, बल्कि हर युग में भक्तों को तृप्त करती है। 

दूसरी ओर, कृष्ण ज्ञान और चेतना का मंथन भी हैं। कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन को दिया गया गीता का उपदेश इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। यह सिर्फ़ एक सैनिक को युद्ध के लिए प्रेरित करने का उपदेश नहीं था, बल्कि जीवन के गहरे सत्यों, कर्मयोग, ज्ञानयोग, और भक्तियोग का सार था। कृष्ण ने मानव को यह सिखाया कि जीवन के संघर्षों से भागना नहीं, बल्कि अपने कर्त्तव्य का पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म है। इस तरह, वे प्रेम और ज्ञान के संतुलन को दर्शाते हैं। 

ग्वाला और योगेश्वर: अद्भुत विरोधाभास

कृष्ण के चरित्र में हमें अद्भुत विरोधाभास देखने को मिलते हैं। वे एक ओर गायों के ग्वाले हैं, जो अपनी बाल-लीलाओं से सबक़ा मन मोह लेते हैं, तो दूसरी ओर वे निर्लिप्त योगेश्वर हैं, जो सांसारिक मोह-माया से परे हैं। उनका माखन चुराना, गोपियों के साथ खेलना, और ग्वालों के साथ समय बिताना उनकी सहजता और सरलता को दर्शाता है। वे राजसी ठाठ-बाट में रहते हुए भी एक साधारण व्यक्ति की तरह जीवन जीते थे। 

परन्तु, यही ग्वाला जब रणभूमि में अर्जुन के सारथी बनता है, तो वह एक निर्लिप्त योगी के रूप में सामने आता है, जिसे युद्ध के परिणामों का कोई मोह नहीं है। वे सिखाते हैं कि हमें अपने कर्त्तव्यों का पालन करते समय परिणामों से विरक्त रहना चाहिए। यह विरोधाभास हमें बताता है कि व्यक्ति को अपनी भूमिका के अनुसार ढलना चाहिए, लेकिन अपने आंतरिक स्वभाव को नहीं खोना चाहिए। 

जन्म से ही विरोधाभास

कृष्ण का जीवन जन्म से ही विरोधाभासों से भरा रहा है। वे मथुरा की कारागार में देवकी और वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्मे, जहाँ चारों ओर भय और अन्याय का वातावरण था। परन्तु उनका बचपन गोकुल के खुले वातावरण में यशोदा के प्रेम और लाड़-प्यार में बीता। यह जीवन का एक महत्त्वपूर्ण सबक़ है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों, हमें अपनी सकारात्मकता और आनंद को नहीं खोना चाहिए। देवकी के लिए वे नंदन थे, जबकि यशोदा के लिए लाल। यह सम्बन्ध की गहराई को दर्शाता है कि प्रेम नाम और रक्त के सम्बन्धों से परे होता है। 

प्रेम के अनेक रूप

कृष्ण के प्रेम के कई रूप हैं, जो उनके व्यक्तित्व को और भी अपरिभाषित बनाते हैं। वे राधा के प्रियतम हैं, जिनसे उनका सम्बन्ध आत्मिक और आध्यात्मिक है। यह प्रेम एक ऐसी भावना है, जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। राधा-कृष्ण का नाम एक साथ लिया जाता है, क्योंकि उनका प्रेम अमर है। 

वहीं, वे रुक्मिणी के पति और द्वारका के राजा हैं। रुक्मिणी ने उन्हें पाने के लिए अपनी सारी मर्यादाओं को त्याग दिया था। रुक्मिणी के लिए वे उनके श्रीतम हैं, अर्थात्‌ उनके जीवन के आधार। वे सत्यभामा के भी प्रिय हैं, जिन्हें उन्होंने कभी भी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी। इस तरह, कृष्ण का प्रेम हर सम्बन्ध में अपनी भूमिका बदलता है, लेकिन उसकी पवित्रता और गहराई कभी कम नहीं होती। वे हर रिश्ते में पूर्णता से जीते हैं। 

प्रकृति और आत्मतत्व का संगम

कृष्ण का प्रकृति से अटूट सम्बन्ध है। वे गायों के साथ वन में खेलते हैं, यमुना के तट पर बाँसुरी बजाते हैं, और प्रकृति के हर कण में बसते हैं। उनका जीवन प्रकृति के साथ सामंजस्य का प्रतीक है। 

साथ ही, वे आत्मतत्व का चिंतन भी हैं। गीता में उन्होंने आत्मा के अमर होने का उपदेश दिया और यह बताया कि शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर है। वे स्वयं परमात्मा हैं, जो हर जीव के हृदय में निवास करते हैं। वे स्थिर चित्त योगी हैं, जो हर स्थिति में शांत और अविचल रहते हैं। उनका यह रूप हमें जीवन के उतार-चढ़ाव में भी शांत रहने की प्रेरणा देता है। 

अनंत और अपरिभाषित

कृष्ण एक ही समय में ग्वाले, राजा, प्रेमी, योद्धा और दार्शनिक हैं। वे एक ही समय में मानवीय और दिव्य हैं। यही कारण है कि उन्हें किसी एक परिभाषा में नहीं बाँधा जा सकता। हर व्यक्ति उन्हें अपने दृष्टिकोण से देखता है और एक नया रूप पाता है। जन्माष्टमी का यह पावन पर्व हमें यही सिखाता है कि हमें कृष्ण के जीवन के विभिन्न पहलुओं से प्रेरणा लेनी चाहिए। उनके प्रेम, ज्ञान, कर्त्तव्यनिष्ठा और साहस को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। 

कृष्ण . . . सच में, उन्हें शब्दों में समेटना असंभव है। वे अनंत हैं, अपरिभाषित हैं, और यही उनकी सबसे बड़ी महिमा है। 

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