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कबीर पर दोहे

 

तेरह सौ अठ्ठानवे, काशी गंगा तीर। 
आडंबर के काल में, जन्मे संत कबीर॥ 
 
गुरुवर रामानंद से, लेकर गहरा ज्ञान। 
निर्गुण ब्रह्म उपासना, जीवन का आधान॥ 
 
जात पाँत के योग का, कबिरा करे विरोध। 
मानव-मानव एक हैं, यह कबीर का शोध॥ 
 
कट्टरता से धर्म का, हुआ सदा ही नाश। 
मानवता ही धर्म है, यह कबीर विश्वास॥ 
 
राजा हो या रंक हो, जग में सभी समान। 
ईश्वर सबका एक है, यह कबीर का ज्ञान॥ 
 
धर्म-कर्म के नाम पर, होते अत्याचार। 
सभी धर्म पाखण्ड मय, कट्टरता आधार॥ 
 
निर्गुण धारा ज्ञान के, थे कबीर कवि श्रेष्ठ। 
ज्ञान भक्ति के मार्ग के, कबिरा सबसे जेष्ठ॥ 
  
सबद रमैनी साखियाँ, हैं कबीर के बैन। 
कबिरा के दोहे सदा, देते मन को चैन॥
 
नहीं व्याकरण में बँधा, कबिरा का जन काव्य। 
जन, समाज जाग्रत रहे, यही लक्ष्य सम्भाव्य॥ 
 
सब समाज बस एक हों, रहे प्रेम व्यवहार। 
मानव मन जाग्रत रहे, मन हों शुद्ध विचार॥ 
 
कबिरा की वाणी विमल, है प्रासंगिक आज। 
समता के संघर्ष की, हैं कबीर आवाज़॥ 

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