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दादी का वाई-फ़ाई पासवर्ड

 

गाडरवारा के शांत वातावरण में, जहाँ हरियाली और धुँध का गठजोड़ था, ‘आनंद निवास’ खड़ा था। यह घर केवल ईंटों और मोर्टार से नहीं बना था, बल्कि दादी, रमा देवी, के चालीस साल के अथक प्रेम और स्मृतियों से गढ़ा गया था। 

लेकिन अब ‘आनंद निवास’ में आनंद कम और सन्नाटा अधिक था। 

दादी रमा देवी, जिनकी उम्र की रेखाएँ उनके चेहरे पर जीवन के अनुभवों का नक़्शा खींचती थीं, रोज़ सुबह तुलसी के पौधे को जल देतीं और इंतज़ार करतीं। इंतज़ार अपने इकलौते बेटे, विक्रांत, और उसके परिवार का। 

विक्रांत और उसकी पत्नी, नेहा, अपने दो बच्चों बारह साल के आर्यन और आठ साल की अनाया को लेकर दिवाली की छुट्टियों में मुंबई से आए थे। यह आगमन किसी पर्व की ख़ुशी से कम नहीं था, पर यह ख़ुशी क्षणभंगुर थी। 

घर में घुसते ही, नेहा का पहला सवाल दादी से नहीं था, बल्कि वाई-फ़ाई (Wi-Fi) के पासवर्ड के बारे में था। 
नेहा बोली, “माँ जी, यहाँ वाई-फ़ाई (Wi-Fi) का पासवर्ड क्या है? बच्चों को असाइनमेंट सबमिट करना है, और मुझे भी काम के मेल्स चेक करने हैं।”

दादी मुस्कुराईं। उन्होंने कभी वाई-फ़ाई (Wi-Fi) का उपयोग नहीं किया था, उनका पासवर्ड तो प्रेम और कहानियाँ थीं। 

दादी ने हँसते हुए कहा, “अरे बहू, यहाँ तो खुली हवा है, चिड़ियों की आवाज़ है। दो दिन तो इन किताबों, इन खिलौनों से बातें कर लो। यहाँ ‘फ़ाई-फ़ाई’ नहीं, बेटा, ‘रिश्ते-नाते’ हैं।”

विक्रांत ने तुरंत अपने 4 जी (4G) हॉटस्पॉट को एक्टिवेट किया और बच्चों को उनके टैब थमा दिए। आर्यन तुरंत अपने नए गेम में खो गया, और अनाया कार्टून देखने लगी। दादी का आँगन, जो कभी बच्चों के खेल और हँसी से गूँजता था, अब हेडफोन की चुप्पी से भर गया था। 

दादी ने अपनी पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर बैठकर गहरी साँस ली। उन्हें लगा जैसे तकनीक की एक अदृश्य दीवार उन्हें अपने ही परिवार से अलग कर रही है। 

♦ ♦

रमा देवी ने बहू के लिए अपनी पुरानी पीतल की हाँड़ी में ख़ास पहाड़ी कढ़ी बनाई थी। उन्हें याद था कि पिछली बार नेहा ने बड़े चाव से इसे खाया था। 

दादी ने बड़े उत्साह से नेहा को पुकारा, “अरे नेहा बहू, आओ! आज मैंने तुम्हारी पसंद की कढ़ी बनाई है। बिलकुल पुराने तरीक़े से।”

नेहा अपने लैपटॉप पर आँखें गड़ाए डाइनिंग टेबल पर आई। 

नेहा बोली, “माँ जी, सॉरी। आज बॉस के साथ अर्जेंट वीडियो कॉल है। और मैं अभी डाइट पर हूँ, बस एक सैलेड खा लूँगी। प्लीज़ बुरा मत मानिएगा।”

दादी का उत्साह एक ठंडे झटके से चूर हो गया। उनकी बनाई कढ़ी, जो प्रेम का प्रतीक थी, मेज़ पर ठंडी होती रही। 

शाम को, बच्चों ने भी दादी की बनाई गुड़ वाली खीर खाने से मना कर दिया। 

“दादी, यह बहुत ‘देसी’ है। मुझे पिज़्ज़ा या फ़्रैंच फ़्राइज़ चाहिए।”

आर्यन के स्वर में तल्ख़ी थी। 

विक्रांत ने आर्यन की ओर तीखी नज़र से देखा, आर्यन सहम गया, “यहाँ ये सब नहीं मिलेगा, दादी जो दे रही है उसे खा लो।”

दादी ने महसूस किया कि उनके वर्षों के अनुभव, उनका स्वाद और उनकी परंपराएँ सब कुछ आज की ‘आधुनिक’ ज़रूरतों के सामने अप्रासंगिक हो गए हैं। उनके पोते-पोती, उनके रक्त के अंश, अब उनसे नहीं, बल्कि स्क्रीन के किरदारों से अधिक जुड़े हुए थे। 

♦ ♦

तीसरे दिन, रमा देवी ने तय किया कि वह अब शिकायत नहीं करेंगी। वह जानती थीं कि प्रेम अब शब्दों में नहीं, बल्कि कार्य में दिखाना होगा। 

दोपहर में, जब सब अपने-अपने उपकरणों में व्यस्त थे, दादी ने आर्यन को आवाज़ दी। 

“आर्यन बेटा, ज़रा यहाँ आओ।” 

आर्यन ने टैब से आँखें हटाए बिना कहा, “दादी, मेरा गेम चल रहा है। बाद में आता हूँ।”

“अभी आओ। यह गेम नहीं, तुम्हारे पूर्वजों का इतिहास है।”

दादी की आवाज़ में एक अनूठी दृढ़ता थी। 

आर्यन अनिच्छा से आया। दादी ने उसे एक पुराना, जीर्ण-शीर्ण, लकड़ी का बक्सा थमाया। 

दादी ने आर्यन से कहा, “इस बक्से में तुम्हारे दादाजी के कुछ चित्र जिनमें वह कुश्ती लड़ रहे हैं और तुम्हारे परदादा का एक पदक है। इसे ज़रा कपड़े से पोंछ दो। इन्हें सहेजना हमारी ज़िम्मेदारी है।”

जब आर्यन ने धूल झाड़नी शुरू की, तो उसका ध्यान एक छोटे, पीले पड़ चुके काग़ज़ पर गया। वह उसके दादाजी की पहली कविता थी, जो उन्होंने दादी को लिखी थी। आर्यन, जो विज्ञान और कोडिंग में रमता था, पहली बार मानवीय भावना की गहराई से रूबरू हुआ। 

आर्यन हैरानी से दादी की ओर देखते हुए बोला “दादी, दादाजी इतने बहादुर थे? और यह पदक क्या है?” 

दादी ने मुस्कुराकर आर्यन को देखते हुए कहा, “यह पदक तुम्हारे परदादा को द्वितीय विश्व युद्ध में बहादुरी के लिए मिला था। हर वस्तु, आर्यन, अपने भीतर एक कहानी रखती है। तुम्हारी हिस्ट्री सिर्फ़ स्कूल की किताब में नहीं है, वह इस बक्से में भी बंद है।”

अनाया भी उत्सुकता से पास आ गई। नेहा और विक्रांत भी, अपने लैपटॉप से आँखें हटाकर, उस पुरानी विरासत को देखने लगे। 

उस पल, वर्षों बाद, स्क्रीन और दीवारें टूटीं। परिवार एक साथ, एक बक्से के चारों ओर बैठा था पुरानी पीढ़ी अपने अनुभव बाँट रही थी, और नई पीढ़ी, अपने जड़ से जुड़ रही थी। 

♦ ♦

जब उनके जाने का समय आया, तो आर्यन ने दादी को गले लगाया। 

“दादी, इस बार का वाई-फ़ाई (Wi-Fi) पासवर्ड बहुत अच्छा था ‘परिवार’। मैं अगली बार आऊँगा तो पहले ये पत्र पढ़ूँगा,”आर्यन दादी से लिपटते हुए बोला। 

विक्रांत ने अपनी माँ का हाथ पकड़ लिया। 

“माँ, आपने हमें याद दिला दिया कि हमारा सबसे ज़रूरी ‘कनेक्शन’ कहाँ है। मैंने अपने काम को ज़रूरी समझा, पर रिश्तों को स्थगित कर दिया था।”

दादी रमा देवी ने दरवाज़े की दहलीज़ पर खड़े होकर अपने परिवार को विदा किया। उन्हें पता था कि वे फिर से अपनी व्यस्त दुनिया में लौट जाएँगे, पर इस बार एक धागा बँध गया था। 

वह जानती थीं कि परिवार का परिवेश सिर्फ़ ईंटों से नहीं बनता, बल्कि उन अनमोल कहानियों, उन मीठी कड़ियों और उन साझा स्मृतियों से बनता है, जिन्हें जीना ज़रूरी है। और सबसे ज़रूरी बात जीवन में सबसे तेज़ और सबसे शक्तिशाली कनेक्शन हमेशा (Wi-Fi) का नहीं, बल्कि हृदय से हृदय का होता है। 

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