दादी का वाई-फ़ाई पासवर्ड
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कहानी डॉ. सुशील कुमार शर्मा15 Nov 2025 (अंक: 288, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
गाडरवारा के शांत वातावरण में, जहाँ हरियाली और धुँध का गठजोड़ था, ‘आनंद निवास’ खड़ा था। यह घर केवल ईंटों और मोर्टार से नहीं बना था, बल्कि दादी, रमा देवी, के चालीस साल के अथक प्रेम और स्मृतियों से गढ़ा गया था।
लेकिन अब ‘आनंद निवास’ में आनंद कम और सन्नाटा अधिक था।
दादी रमा देवी, जिनकी उम्र की रेखाएँ उनके चेहरे पर जीवन के अनुभवों का नक़्शा खींचती थीं, रोज़ सुबह तुलसी के पौधे को जल देतीं और इंतज़ार करतीं। इंतज़ार अपने इकलौते बेटे, विक्रांत, और उसके परिवार का।
विक्रांत और उसकी पत्नी, नेहा, अपने दो बच्चों बारह साल के आर्यन और आठ साल की अनाया को लेकर दिवाली की छुट्टियों में मुंबई से आए थे। यह आगमन किसी पर्व की ख़ुशी से कम नहीं था, पर यह ख़ुशी क्षणभंगुर थी।
घर में घुसते ही, नेहा का पहला सवाल दादी से नहीं था, बल्कि वाई-फ़ाई (Wi-Fi) के पासवर्ड के बारे में था।
नेहा बोली, “माँ जी, यहाँ वाई-फ़ाई (Wi-Fi) का पासवर्ड क्या है? बच्चों को असाइनमेंट सबमिट करना है, और मुझे भी काम के मेल्स चेक करने हैं।”
दादी मुस्कुराईं। उन्होंने कभी वाई-फ़ाई (Wi-Fi) का उपयोग नहीं किया था, उनका पासवर्ड तो प्रेम और कहानियाँ थीं।
दादी ने हँसते हुए कहा, “अरे बहू, यहाँ तो खुली हवा है, चिड़ियों की आवाज़ है। दो दिन तो इन किताबों, इन खिलौनों से बातें कर लो। यहाँ ‘फ़ाई-फ़ाई’ नहीं, बेटा, ‘रिश्ते-नाते’ हैं।”
विक्रांत ने तुरंत अपने 4 जी (4G) हॉटस्पॉट को एक्टिवेट किया और बच्चों को उनके टैब थमा दिए। आर्यन तुरंत अपने नए गेम में खो गया, और अनाया कार्टून देखने लगी। दादी का आँगन, जो कभी बच्चों के खेल और हँसी से गूँजता था, अब हेडफोन की चुप्पी से भर गया था।
दादी ने अपनी पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर बैठकर गहरी साँस ली। उन्हें लगा जैसे तकनीक की एक अदृश्य दीवार उन्हें अपने ही परिवार से अलग कर रही है।
♦ ♦
रमा देवी ने बहू के लिए अपनी पुरानी पीतल की हाँड़ी में ख़ास पहाड़ी कढ़ी बनाई थी। उन्हें याद था कि पिछली बार नेहा ने बड़े चाव से इसे खाया था।
दादी ने बड़े उत्साह से नेहा को पुकारा, “अरे नेहा बहू, आओ! आज मैंने तुम्हारी पसंद की कढ़ी बनाई है। बिलकुल पुराने तरीक़े से।”
नेहा अपने लैपटॉप पर आँखें गड़ाए डाइनिंग टेबल पर आई।
नेहा बोली, “माँ जी, सॉरी। आज बॉस के साथ अर्जेंट वीडियो कॉल है। और मैं अभी डाइट पर हूँ, बस एक सैलेड खा लूँगी। प्लीज़ बुरा मत मानिएगा।”
दादी का उत्साह एक ठंडे झटके से चूर हो गया। उनकी बनाई कढ़ी, जो प्रेम का प्रतीक थी, मेज़ पर ठंडी होती रही।
शाम को, बच्चों ने भी दादी की बनाई गुड़ वाली खीर खाने से मना कर दिया।
“दादी, यह बहुत ‘देसी’ है। मुझे पिज़्ज़ा या फ़्रैंच फ़्राइज़ चाहिए।”
आर्यन के स्वर में तल्ख़ी थी।
विक्रांत ने आर्यन की ओर तीखी नज़र से देखा, आर्यन सहम गया, “यहाँ ये सब नहीं मिलेगा, दादी जो दे रही है उसे खा लो।”
दादी ने महसूस किया कि उनके वर्षों के अनुभव, उनका स्वाद और उनकी परंपराएँ सब कुछ आज की ‘आधुनिक’ ज़रूरतों के सामने अप्रासंगिक हो गए हैं। उनके पोते-पोती, उनके रक्त के अंश, अब उनसे नहीं, बल्कि स्क्रीन के किरदारों से अधिक जुड़े हुए थे।
♦ ♦
तीसरे दिन, रमा देवी ने तय किया कि वह अब शिकायत नहीं करेंगी। वह जानती थीं कि प्रेम अब शब्दों में नहीं, बल्कि कार्य में दिखाना होगा।
दोपहर में, जब सब अपने-अपने उपकरणों में व्यस्त थे, दादी ने आर्यन को आवाज़ दी।
“आर्यन बेटा, ज़रा यहाँ आओ।”
आर्यन ने टैब से आँखें हटाए बिना कहा, “दादी, मेरा गेम चल रहा है। बाद में आता हूँ।”
“अभी आओ। यह गेम नहीं, तुम्हारे पूर्वजों का इतिहास है।”
दादी की आवाज़ में एक अनूठी दृढ़ता थी।
आर्यन अनिच्छा से आया। दादी ने उसे एक पुराना, जीर्ण-शीर्ण, लकड़ी का बक्सा थमाया।
दादी ने आर्यन से कहा, “इस बक्से में तुम्हारे दादाजी के कुछ चित्र जिनमें वह कुश्ती लड़ रहे हैं और तुम्हारे परदादा का एक पदक है। इसे ज़रा कपड़े से पोंछ दो। इन्हें सहेजना हमारी ज़िम्मेदारी है।”
जब आर्यन ने धूल झाड़नी शुरू की, तो उसका ध्यान एक छोटे, पीले पड़ चुके काग़ज़ पर गया। वह उसके दादाजी की पहली कविता थी, जो उन्होंने दादी को लिखी थी। आर्यन, जो विज्ञान और कोडिंग में रमता था, पहली बार मानवीय भावना की गहराई से रूबरू हुआ।
आर्यन हैरानी से दादी की ओर देखते हुए बोला “दादी, दादाजी इतने बहादुर थे? और यह पदक क्या है?”
दादी ने मुस्कुराकर आर्यन को देखते हुए कहा, “यह पदक तुम्हारे परदादा को द्वितीय विश्व युद्ध में बहादुरी के लिए मिला था। हर वस्तु, आर्यन, अपने भीतर एक कहानी रखती है। तुम्हारी हिस्ट्री सिर्फ़ स्कूल की किताब में नहीं है, वह इस बक्से में भी बंद है।”
अनाया भी उत्सुकता से पास आ गई। नेहा और विक्रांत भी, अपने लैपटॉप से आँखें हटाकर, उस पुरानी विरासत को देखने लगे।
उस पल, वर्षों बाद, स्क्रीन और दीवारें टूटीं। परिवार एक साथ, एक बक्से के चारों ओर बैठा था पुरानी पीढ़ी अपने अनुभव बाँट रही थी, और नई पीढ़ी, अपने जड़ से जुड़ रही थी।
♦ ♦
जब उनके जाने का समय आया, तो आर्यन ने दादी को गले लगाया।
“दादी, इस बार का वाई-फ़ाई (Wi-Fi) पासवर्ड बहुत अच्छा था ‘परिवार’। मैं अगली बार आऊँगा तो पहले ये पत्र पढ़ूँगा,”आर्यन दादी से लिपटते हुए बोला।
विक्रांत ने अपनी माँ का हाथ पकड़ लिया।
“माँ, आपने हमें याद दिला दिया कि हमारा सबसे ज़रूरी ‘कनेक्शन’ कहाँ है। मैंने अपने काम को ज़रूरी समझा, पर रिश्तों को स्थगित कर दिया था।”
दादी रमा देवी ने दरवाज़े की दहलीज़ पर खड़े होकर अपने परिवार को विदा किया। उन्हें पता था कि वे फिर से अपनी व्यस्त दुनिया में लौट जाएँगे, पर इस बार एक धागा बँध गया था।
वह जानती थीं कि परिवार का परिवेश सिर्फ़ ईंटों से नहीं बनता, बल्कि उन अनमोल कहानियों, उन मीठी कड़ियों और उन साझा स्मृतियों से बनता है, जिन्हें जीना ज़रूरी है। और सबसे ज़रूरी बात जीवन में सबसे तेज़ और सबसे शक्तिशाली कनेक्शन हमेशा (Wi-Fi) का नहीं, बल्कि हृदय से हृदय का होता है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अपना दुःख, पराया दुःख
किशोर साहित्य कहानी | डॉ. दिनेश पाठक ‘शशि’सक्षम के पापा सरकारी विभाग में इंजीनियर…
अब पछताए होत का
किशोर साहित्य कहानी | प्रभुदयाल श्रीवास्तवभोला का गाँव शहर से लगा हुआ है। एक किलोमीटर…
आज़ादी की धरोहर
किशोर साहित्य कहानी | डॉ. सुशील कुमार शर्मा(स्वतंत्रता दिवस पर एक कहानी-सुशील शर्मा) …
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
व्यक्ति चित्र
कविता
- अधूरा सा
- अधूरी लिपि में लिखा प्रेम
- अनुत्तरित प्रश्न
- अर्धनारीश्वर
- आकाशगंगा
- आत्मा का संगीत
- आप कहाँ हो प्रेमचंद
- आस-किरण
- उड़ गयी गौरैया
- एक पेड़ का अंतिम वचन
- एक स्कूल
- एक स्त्री का नग्न होना
- ओ पारिजात
- ओमीक्रान
- ओशो ने कहा
- और बकस्वाहा बिक गया
- कबीर छंद – 001
- कभी तो मिलोगे
- करवाचौथ की चाँदनी में
- कविता तुम कहाँ हो
- कविताएँ संस्कृतियों के आईने हैं
- कहने को अपने
- काल डमरू
- काश तुम समझ सको
- कृष्ण तुम पर क्या लिखूँ-2
- क्रिकेट बस क्रिकेट है जीवन नहीं
- गंगा अवतरण
- गण और तंत्र के बीच
- गाँधी धीरे धीरे मर रहे हैं
- गाँधी मरा नहीं करते हैं
- गाँधी सभी यक्ष प्रश्नों के उत्तर
- गाँधीजी और लाल बहादुर
- गाडरवारा गौरव गान
- गोपाष्टमी: गौ की पुकार
- गोवर्धन
- चरित्रहीन
- चलो उठो बढ़ो
- चिर-प्रणय
- चुप क्यों हो
- छूट गए सब
- जब प्रेम उपजता है
- जय राम वीर
- जहाँ रहना हमें अनमोल
- जीवन का सबसे सुंदर रंग हो तुम
- जीवन की अनकही धारा
- जैसे
- ठण्ड
- तमसोमा ज्योतिर्गमय
- तुम और मैं
- तुम जो हो
- तुमसे मिलकर
- तुम्हारी आँखें
- तुम्हारी रूह में बसा हूँ मैं
- तुम्हारे जाने के बाद
- तुम—मेरी सबसे अनकही कविता
- तेरा घर या मेरा घर
- देखो होली आई
- देह की देहरी और प्राण का मौन
- धराली की पुकार
- नए युग का शिक्षक
- नए वर्ष में
- नशे पर दो कविताएँ
- नाम_जपो_किरत_करो_वंड_छको
- नारी का प्यार
- नीलकंठ
- नीले वस्त्रों में उगता सूरज
- पत्ते से बिछे लोग
- पिता: एक अनकहा संवाद
- पीले अमलतास के नीचे— तुम्हारे लिए
- पुण्य सलिला माँ नर्मदे
- पुरुष का रोना निषिद्ध है
- पृथ्वी की अस्मिता
- पोला पिठौरा
- प्रणम्य काशी
- प्रभु प्रार्थना
- प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली
- प्रेम का प्रतिदान कर दो
- प्रेम में पूर्णिमा नहीं होती
- फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है
- बस तू ही तू
- बसंत बहार
- बहुत कुछ सीखना है
- बापू और शास्त्री–अमर प्रेरणा
- बोलती कविता
- बोलती कविता
- ब्राह्मण कौन है
- ब्राह्मणत्व की ज्योति
- बड़ा कठिन है आशुतोष सा हो जाना
- भीम शिला
- मत टूटना तुम
- मन का पौधा
- माँ कात्यायनी: भगवती का षष्ठम प्राकट्य रूप
- माँ कालरात्रि: माँ भगवती का सप्तम प्राकट्य स्वरूप
- माँ कूष्मांडा – नवरात्र का चतुर्थ स्वरूप
- माँ चंद्रघंटा – नवरात्र का तृतीय स्वरूप
- माँ महागौरी: भगवती का अष्टम प्राकट्य स्वरूप
- माँ शैलपुत्री–शारदीय नवरात्र का प्रथम प्राकट्य
- माँ सिद्धिदात्री: भक्त की प्रार्थना
- माँ स्कंदमाता: माँ का पंचम रूप
- माँ-ब्रह्मचारिणी – नवरात्र का द्वितीय स्वरूप
- मिच्छामी दुक्कड़म्
- मिट्टी का घड़ा
- मुझे कुछ कहना है
- मुझे लिखना ही होगा
- मृगतृष्णा
- मेरा मध्यप्रदेश
- मेरी चाहत
- मेरी बिटिया
- मेरी भूमिका
- मेरे भैया
- मेरे लिए एक कविता
- मैं अब भी प्रतीक्षा में हूँ
- मैं अब भी वही हूँ . . .
- मैं तुम ही तो हूँ
- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
- मैं पर्यावरण बोल रहा हूँ . . .
- मैं मिलूँगा तुम्हें
- मैं लड़ूँगा
- मैं वो नहीं
- मौन तुम्हारा
- यज्ञ
- यदि मेरी सुधि तुम ले लेतीं
- ये चाँद
- रक्तदान
- रक्षा बंधन
- राखी–धागों में बँधा विश्वास
- रिश्ते
- रुत बदलनी चाहिए
- वर्षा ऋतु
- वर्षा
- वसंत के हस्ताक्षर
- विस्मृत होती बेटियाँ
- वृद्ध—समय की धरोहर
- वो तेरी गली
- शक्कर के दाने
- शब्दों को कुछ कहने दो
- शाश्वत निनाद
- शिक्षक दिवस
- शिव आपको प्रणाम है
- शिव संकल्प
- शुभ्र चाँदनी सी लगती हो
- श्रद्धा ही श्राद्ध है
- संघर्ष का सूर्योदय
- सखि बसंत में तो आ जाते
- सत्य के दो मुख
- सत्य के नज़दीक
- सिंदूर का प्रतिशोध
- सिस्टम का श्राद्ध
- सीता का संत्रास
- सुनलो ओ रामा
- सुनो प्रह्लाद
- सृष्टि की अंतिम प्रार्थना
- सेवा, संकल्प और समर्पण
- स्त्रियों का मन एक सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड
- स्पर्श से परे
- स्वतंत्रता का सूर्य
- स्वप्न से तुम
- स्वर्णरेखा
- हर बार लिखूँगा
- हरितालिका तीज
- हिंदी–एकता की धड़कन, संस्कृति का स्वर
- हे केदारनाथ
- हे छट मैया
- हे राधे
- हे शिक्षक
- हे क़लमकार
किशोर साहित्य कहानी
कहानी
- अर्जुन से आर्यन तक: आभासी दुनिया का सच
- अर्द्धांगिनी
- जड़ों से जुड़ना
- जल कुकड़ी
- जाको राखे सांइयाँ
- त्रिवेणी संगम
- दरकता मन
- पुरानी नींव, नए मकान
- पूर्ण अनुनाद
- बुआ की राखी
- ब्रह्मराक्षस का अभिशाप
- मंदबुद्धि
- मन के एकांत में
- मैडम एम
- मौन की परछाइयाँ
- राखी का फ़र्ज़
- रिश्तों की गर्माहट
- रिश्तों के रेशमी धागे
- रेशमी धागे: सेवा का नया पथ
- हरसिंगार
- ज़िन्दगी सरल है पर आसान नहीं
कविता - क्षणिका
दोहे
- अटल बिहारी पर दोहे
- आदिवासी दिवस पर दोहे
- कबीर पर दोहे
- क्षण भंगुर जीवन
- गणपति
- गणेश उत्सव पर दोहे
- गुरु पर दोहे – 01
- गुरु पर दोहे – 02
- गुरु पर दोहे–03
- गोविन्द गीत— 001 प्रथमो अध्याय
- गोविन्द गीत— 002 द्वितीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 003 तृतीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 004 चतुर्थ अध्याय
- गोविन्द गीत— 005 पंचम अध्याय
- गोविन्द गीत— 006 षष्टम अध्याय
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 1
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 2
- चंद्रशेखर आज़ाद
- जल है तो कल है
- जीवन
- टेसू
- दीपावली पर दोहे
- नम्रता पर दोहे
- नरसिंह अवतरण दिवस पर दोहे
- नवदुर्गा पर दोहे
- नववर्ष
- नूतन वर्ष
- प्रभु परशुराम पर दोहे
- प्रेम
- प्रेम पर दोहे
- प्रेमचंद पर दोहे
- फगुनिया दोहे
- बचपन पर दोहे
- बस्ता
- बाबा साहब अम्बेडकर जयंती पर कुछ दोहे
- बाल हनुमान पर दोहे
- बुद्ध
- बेटी पर दोहे
- मित्रता पर दोहे–01
- मित्रता पर दोहे–02
- मैं और स्व में अंतर
- रक्षाबंधन पर दोहे
- रक्षाबंधन पर दोहे
- राम और रावण
- वट सावित्री व्रत पर दोहे
- विवेक
- शिक्षक पर दोहे
- शिक्षक पर दोहे - 2022
- श्रम की रोटी पर दोहे
- श्री राधा पर दोहे
- संग्राम
- सूरज को आना होगा
- स्वतंत्रता दिवस पर दोहे
- हमारे कृष्ण
- हरितालिका व्रत पर दोहे
- हिंदी पर दोहे
- होली
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- अमृत काल का आम
- एक कप चाय और सौ जज़्बात
- कविता बेचो, कविता सीखो!
- काश मैं नींबू होता
- गुरु दक्षिणा का नया संस्करण—व्हाट्सएप वाला प्रणाम!
- घरेलू मॉडल स्त्री
- डॉ. सिंघई का ‘संतुलित’ संसार
- नवदुर्गा महोत्सव और मोबाइल
- न्याय की गली में कुत्तों का दरबार
- प्रोफ़ाइल पिक की देशभक्ति
- मातृ दिवस और पितृ दिवस: कैलेंडर पर टँगे शब्द
- मिठाइयों में बसा मनुष्य का मनोविज्ञान
- वाघा का विघटन–जब शेर भी कन्फ्यूज़ हो गया
- शर्मा जी और सब्ज़ी–एक हरी-भरी कथा
सामाजिक आलेख
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- अबला निर्मला सबला
- आप अभिमानी हैं या स्वाभिमानी ख़ुद को परखिये
- आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और गूगल के वर्तमान संदर्भ में गुरु की प्रासंगिकता
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- करवा चौथ व्रत: श्रद्धा की पराकाष्ठा या बाज़ार का विस्तार?
- कृत्रिम मेधा (AI): वरदान या अभिशाप?
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गाय की दुर्दशा: एक सामूहिक अपराध की चुप्पी
- गौरैया तुम लौट आओ
- जीवन संघर्षों में खिलता अंतर्मन
- नकारात्मक विचारों को अस्वीकृत करें
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर: समता, न्याय और नवजागरण के प्रतीक
- भारतीय जीवन मूल्य
- भारतीय संस्कृति में मूल्यों का ह्रास क्यों
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- मानव मन का सर्वश्रेष्ठ उल्लास है होली
- मानवीय संवेदनाएँ वर्तमान सन्दर्भ में
- वाह रे पर्यावरण दिवस!
- विश्व पर्यावरण दिवस – वर्तमान स्थितियाँ और हम
- वृद्धजन—अतीत के प्रकाश स्तंभ और भविष्य के सेतु
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- शिक्षक पेशा नहीं मिशन है
- शिक्षण का वर्तमान परिदृश्य: चुनौतियाँ, अपेक्षाएँ और भावी दिशा
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- सम्बन्धों का क्षरण: एक सामाजिक विमर्श
- स्वतंत्रता दिवस: गौरव, बलिदान, हमारी ज़िम्मेदारी और स्वर्णिम भविष्य की ओर भारत
- हिंदी और रोज़गार: भाषा से अवसरों की नई दुनिया
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
ललित निबन्ध
कविता - हाइकु
लघुकथा
- अंतर
- अनैतिक प्रेम
- अपनी जरें
- आँखों का तारा
- आओ तुम्हें चाँद से मिलाएँ
- उजाले की तलाश
- उसका प्यार
- एक बूँद प्यास
- काहे को भेजी परदेश बाबुल
- कोई हमारी भी सुनेगा
- गाय की रोटी
- गाय ‘पालन की परिभाषा’!
- डर और आत्म विश्वास
- तहस-नहस
- दूसरी माँ
- नारी ‘तुम मत रुको’!
- पति का बटुआ
- पत्नी
- पाँच लघु कथाएँ
- पौधरोपण
- बेटी की गुल्लक
- माँ का ब्लैकबोर्ड
- माँ ‘छाया की तरह’!
- मातृभाषा
- माया
- मुझे छोड़ कर मत जाओ
- मुझे ‘बहने दो’!
- म्यूज़िक कंसर्ट
- रिश्ते (डॉ. सुशील कुमार शर्मा)
- रौब
- शर्बत
- शिक्षक सम्मान
- शिक्षा की पाँच दीपशिखाएँ
- शुद्धि की प्रतीक्षा
- शेष शुभ
- सपनों की उड़ान
- हर चीज़ फ़्री
- हिंदी–माँ की आवाज़
- हिन्दी इज़ द मोस्ट वैलुएबल लैंग्वेज
- ग़ुलाम
- ज़िन्दगी और बंदगी
- फ़र्ज़
साहित्यिक आलेख
- आज की हिन्दी कहानियों में सामाजिक चित्रण
- गीत सृष्टि शाश्वत है
- डिजिटल युग में कविता की प्रासंगिकता और पाठक की भूमिका
- पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री विमर्श
- प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन
- प्रेमचंद का साहित्य – जीवन का अध्यात्म
- बुन्देल खंड में विवाह के गारी गीत
- भारत में लोक साहित्य का उद्भव और विकास
- मध्यकालीन एवं आधुनिक काव्य
- रामायण में स्त्री पात्र
- वर्तमान में साहित्यकारों के समक्ष चुनौतियाँ
- समाज और मीडिया में साहित्य का स्थान
- समावेशी भाषा के रूप में हिन्दी
- साहित्य में प्रेम के विविध स्वरूप
- साहित्य में विज्ञान लेखन
- हिंदी और आधुनिक तकनीक: डिजिटल युग में भाषा की चुनौतियाँ और संभावनाएँ
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी साहित्य में प्रेम की अभिव्यंजना
सांस्कृतिक आलेख
- कृष्ण: अनंत अपरिभाषा
- गणेश चतुर्थी: आस्था, संस्कृति और सामाजिक चेतना का महासंगम
- चातुर्मास: आध्यात्मिक शुद्धि और प्रकृति से सामंजस्य का पर्व
- जगन्नाथ रथयात्रा: जन-जन का पर्व, आस्था और समानता का प्रतीक
- ब्राह्मण: उत्पत्ति, व्याख्या, गुण, शाखाएँ और समकालीन प्रासंगिकता
- भगवान परशुराम: एक बहुआयामी व्यक्तित्व एवं समकालीन प्रासंगिकता
- मनुस्मृति: आलोचना से समझ तक
- वट सावित्री व्रत: आस्था, आधुनिकता और लैंगिक समानता की कसौटी
- वर्तमान समय में हनुमान जी की प्रासंगिकता
- हरितालिका तीज: आस्था, शृंगार और भारतीय संस्कृति का पर्व
कविता-मुक्तक
- अक्षय तृतीया
- कबीर पर कुंडलियाँ
- कुण्डलिया - अटल बिहारी बाजपेयी को सादर शब्दांजलि
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - अपना जीवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - आशा, संकल्प
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - इतराना, देशप्रेम
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - काशी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गंगा
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गणपति वंदना - 001
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गणपति वंदना - 002
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गीता
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गणेश
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गोवर्धन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जलेबी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - झंडा वंदन, नमन शहीदी आन, जय भारत
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नया संसद भवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नर्स दिवस पर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नवसंवत्सर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पर्यावरण
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पहली फुहार
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पेंशन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बचपन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बम बम भोले
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बुझ गया रंग
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - भटकाव
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मकर संक्रांति
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मतदान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मानस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - योग दिवस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - विद्या, शिक्षक
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - शुभ धनतेरस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - श्रम एवं कर्मठ जीवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - संवेदन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - सावन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - स्तनपान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - हिन्दी दिवस विशेष
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - होली
- कुण्डलिया - सीखना
- कुण्डलिया – कोशिश
- कुण्डलिया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – यूक्रेन युद्ध
- कुण्डलिया – परशुराम
- कुण्डलिया – संयम
- कुण्डलियाँ स्वतंत्रता दिवस पर
- गणतंत्र दिवस
- दुर्मिल सवैया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – 001
- प्रदूषण और पर्यावरण चेतना
- शिव वंदना
- सायली छंद - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - चाँद
- सोशल मीडिया और युवावर्ग
- होली पर कुण्डलिया
गीत-नवगीत
- अखिल विश्व के स्वामी राम
- अच्युत माधव
- अनुभूति
- अब कहाँ प्यारे परिंदे
- अब का सावन
- अब नया संवाद लिखना
- अब वसंत भी जाने क्यों
- अबके बरस मैं कैसे आऊँ
- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
- आज से विस्मृत किया सब
- इस बार की होली में
- उठो उठो तुम हे रणचंडी
- उर में जो है
- कि बस तुम मेरी हो
- कृष्ण मुझे अपना लो
- कृष्ण सुमंगल गान हैं
- गमलों में है हरियाली
- गर इंसान नहीं माना तो
- गुरु पूर्णिमा पर गीत
- गुलशन उजड़ गया
- गोपी गीत
- घर घर फहरे आज तिरंगा
- चला गया दिसंबर
- चलो होली मनाएँ
- चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
- ज्योति शिखा सी
- झरता सावन
- टेसू की फाग
- तुम तुम रहे
- तुम मुक्ति का श्वास हो
- दिन भर बोई धूप को
- धरती बोल रही है
- नया कलेंडर
- नया वर्ष
- नव अनुबंध
- नववर्ष
- फागुन ने कहा
- फूला हरसिंगार
- बहिन काश मेरी भी होती
- बेटी घर की बगिया
- बोन्साई वट हुए अब
- भरे हैं श्मशान
- मतदाता जागरूकता पर गीत
- मन का नाप
- मन को छलते
- मन गीत
- मन बातें
- मन वसंत
- मन संकल्पों से भर लें
- महावीर पथ
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 002
- मौन गीत फागुन के
- मज़दूर दिवस पर गीत
- यूक्रेन युद्ध
- वयं राष्ट्र
- वसंत पर गीत
- वासंती दिन आए
- विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
- शस्य श्यामला भारत भूमि
- शस्य श्यामली भारत माता
- शिव
- श्रावण
- सत्य का संदर्भ
- सुख-दुख सब आने जाने हैं
- सुख–दुख
- सूना पल
- सूरज की दुश्वारियाँ
- सूरज को आना होगा
- स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
- हर हर गंगे
- हिल गया है मन
- ख़ुद से मुलाक़ात
- ख़ुशियों की दीवाली हो
स्वास्थ्य
स्मृति लेख
खण्डकाव्य
ऐतिहासिक
बाल साहित्य कविता
- अरे गिलहरी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - ठंड
- गर्मी की छुट्टी
- चिड़िया का दुःख
- चिड़िया की हिम्मत
- पतंग
- पानी बचाओ
- बादल भैया
- बाल कविताएँ – 001 : डॉ. सुशील कुमार शर्मा
- बेचारा गोलू
- मुनमुन गिलहरी
- मैं कुछ ख़ास बनूँगा
- मैं ही तो हूँ— तुम्हारे भीतर
- लोरी
- लौकी और कद्दू की लड़ाई
- हम हैं छोटे बच्चे
- होली चलो मनायें
नाटक
रेखाचित्र
चिन्तन
काम की बात
काव्य नाटक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
अनूदित कविता
किशोर साहित्य कविता
एकांकी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं