अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

होत कबड्डी होत कबड्डी


(भारत की बेटियाँ मिट्टी की महिमा, भारत की विजय) 
  
कबड्डी
यह केवल खेल नहीं, 
यह साँसों की तपस्या है, 
मिट्टी से उठती हुई
एक अडिग प्रतिज्ञा है। 
 
भारत की बेटियाँ
जब मैदान में उतरीं, 
तो लगा
मानो धरती ने
अपने सबसे सशक्त स्वर
उनके भीतर रख दिए हों। 
 
ताइपे की चुनौती
कठिन अवश्य थी, 
पर कठिनाई
उनके साहस का विलोम कभी नहीं रही। 
 
कबड्डी . . . कबड्डी . . . 
के मंत्र में
उनकी धड़कनें
युद्धवीर की तरह थिरकती रहीं। 
 
पकड़ में दृढ़ता, 
क़दमों में संतुलन, 
श्वास में मंत्र, 
दृष्टि में विजय की रेखा
सब कुछ
एक ताल, एक लय में बँधा
मानो भारत का आत्मविश्वास
रूप धारण कर मैदान में उतर आया हो। 
 
ताइपे की हर चाल
वे पढ़ लेतीं
जैसे प्रतिद्वंद्वी की कठोरता के भीतर
छिपा भ्रम
उन्हें पहले से ही ज्ञात हो। 
 
जब आख़िरी पॉइंट
भारत की मुट्ठी में आया, 
तो लगा
पूरा मैदान
एक साथ ‘जय’ का उद्गार बन उठा है। 
 
उनकी विजय
सिर्फ़ एक ट्रॉफी नहीं, 
यह वह पल है
जब मिट्टी
अपनी संतानों पर गर्व करती है। 
 
यह वह क्षण है
जब दुनिया स्वीकार करती है
भारत की कबड्डी केवल खेल नहीं, 
एक विरासत है, 
एक परंपरा है, 
एक अदम्य जिजीविषा है। 
 
बेटियो, 
तुम्हारी जीत
हमारे मन का उत्सव है। 
तुम्हारे साहस ने
आज तिरंगे को हवा के सबसे ऊँचे शिखर पर
नवगान सा फहरा दिया है। 
 
धन्य हो
तुमने सिद्ध कर दिया
कि जो खेल
मिट्टी से जन्म लेता है, 
वह विश्व को
अपनी ताक़त पर नतमस्तक कर ही देता है। 
 
भारत की कबड्डी, 
भारत की बेटियाँ, 
भारत की विजय
जय, जय, जय! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

लघुकथा

व्यक्ति चित्र

किशोर साहित्य कहानी

कहानी

कविता - क्षणिका

दोहे

सांस्कृतिक कथा

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

सामाजिक आलेख

ललित निबन्ध

कविता - हाइकु

साहित्यिक आलेख

सांस्कृतिक आलेख

कविता-मुक्तक

गीत-नवगीत

स्वास्थ्य

स्मृति लेख

खण्डकाव्य

ऐतिहासिक

बाल साहित्य कविता

नाटक

रेखाचित्र

चिन्तन

काम की बात

काव्य नाटक

यात्रा वृत्तांत

हाइबुन

पुस्तक समीक्षा

हास्य-व्यंग्य कविता

गीतिका

अनूदित कविता

किशोर साहित्य कविता

एकांकी

ग़ज़ल

बाल साहित्य लघुकथा

सिनेमा और साहित्य

किशोर साहित्य नाटक

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं