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एक स्त्री का नग्न होना

 

स्त्री को करके नग्न
क्या पाया तुमने
छू कर नग्न अंगों को
अपनी माँ को लजाया तुमने। 
 
मेरे सभी अंगों से तुम
परिचित थे। 
मेरी योनि का प्रथम
स्पर्श ही तुम्हारा था
जब शिशु रूप मेंं 
तुमने इससे जन्म लिया
मेरे स्तन
मेरे अधर
सब तो तुम देख चुके थे
शिशु रूप मेंं
तुम्हारी माँ के रूप मेंं
फिर क्यों ये
मानवता के विरुद्ध
तुम्हारा नंगा नाच हुआ
क्यों भीड़ के सामने
अपनी माँ के इस तन को
तुमने नग्न किया। 
 
शायद तुम्हारे बाप और 
उनके भी बाप 
और शायद सभी पुरुषों
की वह मानसिकता
जो स्त्री के अपमान मेंं
स्वयं का सम्मान ढूँढ़ती है। 
उसी विकृत मानसिकता
का यह अनुसरण है। 

सदियों से स्त्री को
ग़ुलाम समझती आ रही
यह मानसिकता सभी
रिश्तों, धर्मों, समाजों 
से ऊपर होती है। 
सभ्यताओं के इस बियाबान मेंं
बुद्ध कब गिद्ध बन जाते हैं
पता ही नहीं चलता। 
पुरुषों का यह डी ऐन ए
एक ख़ूँरेज़ ख़ंजर बन
हमेशा करता रहता है
स्त्रियों को नग्न। 
 
एक स्त्री का नग्न होना
मानवता का नग्न होना है
ईश्वर का नग्न होना
प्रकृति का नग्न होना है। 
स्त्री पत्थर पर नग्न उकेरी जाती है
स्त्री पेंटिंग मेंं नग्न उकेरी जाती है। 
स्त्री के वस्त्र सभा में उतारे जाते हैं। 
स्त्री बाज़ार मेंं नग्न की जाती है। 
स्त्री राजनीति मेंं नग्न की जाती है। 
 
कितने ही स्त्री मुक्ति के आंदोलन हों
कितने ही विमर्श हों
जब तक स्त्री की नग्नता से
पुरुष सम्मान जुड़ा है। 
स्त्री का नग्न होना जारी रहेगा। 
 
काश कृष्ण दे पाते इन सभी
द्रौपदीयों को चीर। 
काश कोई रणचंडी इन पुरुषों
के पुरुषत्व को कर देती पौरुष विहीन। 
बस एक ही प्रार्थना है प्रभु
कोई माँ कोई बहिन नग्नता से
अपमानित न हो। 

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