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कभी तो मिलोगे


कभी तो होगा पुण्यों
का उदय
कभी तो मिलोगे तुम
जाने कितने जन्मों का सफ़र
का होगा कभी तो अंत। 
 
मेरी हर पूजा हर प्रार्थना
भले ही की गई हो
भगवान की किसी मूर्ति के आगे। 
सभी पुष्पांजलियाँ चढ़ी हैं
सिर्फ़ तुम्हें ही सोच कर। 
 
जितनी भी पुस्तकें पढ़ीं है
जितने भी ग्रंथों को बाँचा है
उन सभी के अर्थ शब्द और
भाव तुम में ही समाहित रहे हैं। 
हर दिन अंजुली भर जल
छोड़ा है सूरज को
सिर्फ़ तुम्हारे नाम से। 
 
कितनी ही कविताएँ
कितने ही आलेख
कहानियों के चरित्र
मैंने लिखे हैं
सिर्फ़ तुम्हें ही सोच कर। 
 
नहीं करतीं असर 
तुम्हारी उपेक्षाएँ
न ही तोड़ सकती है
मुझे तुम्हारी नज़रअंदाज़ी 
नफ़रत, ज़ुल्म। 
मेरा स्वभाव ही तुम्हें
स्नेह करने का है। 
 
साँस के हर स्पंदन में
हृदय की हर धड़कन में
हर रोम की आवाज़ में
जीवन की हर अनुभूति में
सिर्फ़ तुम्हारा ही स्पर्श है। 
 
मैंने ढाल लिया है ख़ुद को
एक दर्पण में
जिसमें तुम्हारा सिर्फ़ 
एक ही
रूप दिखता है। 
प्रेम का
बाक़ी सब विलीन हो जाते हैं। 
 
हरपल एक ही आस
एक ही विश्वास
कभी तो मिलोगे
मूर्त या अमूर्त में। 
हर रिश्ते
हर बंधन को लाँघ कर
आओगे मेरे पास। 

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