गोपी गीत
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत डॉ. सुशील कुमार शर्मा1 Apr 2024 (अंक: 250, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
छंद काव्यानुवाद-सुशील शर्मा
गोपी गीत
(कुकुभ /लावणी /ताटंक छंद प्रति चरण 16, 14 मात्राएँ)
(गोपी गीत पाठ श्रीमदभागवत महापुराण के दसवें स्कंध के रासपंचाध्यायी का 31 वाँ अध्याय है। इसमें 19 श्लोक हैं। रास लीला के समय गोपियों को मान हो जाता है। भगवान् उनका मान भंग करने के लिए अंतर्धान हो जाते हैं। उन्हें न पाकर गोपियाँ व्याकुल हो जाती हैं। वे आर्त्त स्वर में श्रीकृष्ण को पुकारती हैं, यही विरहगान गोपी गीत है। इसमें प्रेम के अश्रु, मिलन की प्यास, दर्शन की उत्कंठा और स्मृतियों का रुदन है। भगवद प्रेम सम्बन्ध में गोपियों का प्रेम सबसे निर्मल, सर्वोच्च और अतुलनीय माना गया है।)
हुए अवतरित तुम जब माधव
बैकुंठी ब्रजधाम प्रभो।
शील सुंदरी श्री लक्ष्मी का
निज प्रवास अविराम प्रभो।
किये समर्पित प्राण आपको
भटकें दसों दिशाओं में।
कृपा करो हे माधव हम पर
तुम मन की आशाओं में। 1
हृदय नाथ प्रभु आप हमारे
हम सेवक तुम स्वामी हो।
राजीव लोचन नयन तुम्हारे
प्रभु तुम अन्तर्यामी हो।
नयन कटारी से हर लीने
तुमने प्राण हमारे हैं।
नहीं अस्त्र ही प्राण निकालें
घातक नयन तुम्हारे हैं। 2
पुरष शिरोमणि मुरलीवाले
सब के तारण हार प्रभो।
हने अघा, वृषभा, व्योमासुर
सबके प्राणाधार प्रभो।
गर्व विखंडित किया इन्द्र का
नथा कालिया विष लहरी।
रक्षित किये प्राण हम सबके
आप प्राण के हैं प्रहरी। 3
मात्र यशोदा पुत्र नहीं तुम
अंतरतम जगदीश्वर हो।
सचराचर अन्तर्यामी प्रभु
सबके तुम परमेश्वर हो।
सृष्टि का कल्याण विहित कर
ब्रह्मा जी से प्रार्थित हो।
हेतु जगत कल्याण समर्पित
यदुवंशी कुल के सुत हो। 4
श्री चरणों में शीश झुका कर
जो माँगा वह पाता है।
शरण तुम्हारी जो भी गहता
वह निर्भय हो जाता है।
जन्म-मृत्यु के बंधन कटते
प्रभु तुम जिसे सनाथ करो।
नेहपूर्वक जिसे गहें श्री
वो कर मेरे माथ धरो। 5
हे ब्रज नंदन, दुःख निकंदन
मधु मुस्कानें मंडित हैं।
मंदहास स्मित श्री अधरों से
घन घमंड सब खंडित हैं।
अहो सखे! मत रूठो हमसे
क्यों हमसे यह दूरी है।
हम अबला असहाय नरी प्रभु
श्यामल दर्श ज़रूरी है। 6
मधुरिम सुंदरतम प्रभु पग हैं
पाप नष्ट कर देते हैं।
श्री वन्दित प्रभु चरण आपके
सारे दुख हर लेते हैं।
गौ बछड़ों के पीछे चलते
विषधर के फण पर नचते।
शांत विरह की व्यथा करो प्रभु
क्यों न हृदय पर पग रखते। 7
मधुर अधर वाणी सुमधुर है
शब्द ध्वनि आकर्षक सब।
ज्ञान बुद्धि सब हुए समाहित
मोहक छवि के दर्शक सब।
सुन-सुन प्रभु वाणी का अमृत
मोहित सब प्रभु प्यारी हैं।
वाणी रस उपहार करो प्रभु
जिसकी हम अधिकारी हैं। 8
दिव्य कर्म लीला अमरित सम
विरह पीर में जीवन है।
ऋषि मुनि ज्ञानी सब गुण गाते
पाप-ताप का मर्दन है।
श्रवण मात्र कल्याण सुमंगल
लीला मधुरिम जो गाता।
नहीं धरा पर उसके जैसा,
हृदय उदार परम दाता। 9
हँसत-लसत वो तिरछी चितवन
वो लीला प्यारी-प्यारी।
मग्न हृदय आनंदित मन था
वो अँखियाँ कारी-कारी।
वो अभिसारी मिलन ठिठोली
प्रेम भरी मीठी बातें।
क्षुब्द हृदय अब तुम बिन छलिया
सूनी-सूनी अब रातें। 10
चरण कमल कोमल सुंदर हैं
हे प्रियतम प्यारे स्वामी।
ब्रज चौरासी कोस भ्रमण कर
गऊओं के तुम अनुगामी।
युगल चरण में कंकड़ काँटे
तिनके कुश चुभ जाते हैं
तन-मन सब बैचेन व्यथित हो
दुःख बहुत हम पाते हैं। 11
सांध्यकाल जब तुम घर लौटो
हम सब दर्शन को भटकें।
धूल-धूसरित मुखड़े पर प्रिय
घुँघराली अलकें लटकें।
रूप सलोना मधुर मनोहर
देख हृदय ललचाता है।
मिलने की उत्कट इच्छा में
हुआ बावरा जाता है। 12
एकमेव हो नाथ आप ही
पीड़ा को हरने वाले।
शरणागत की हर इच्छा को
सदा पूर्ण करने वाले।
श्री सेवित पृथ्वी के भूषण
भव बाधा प्रभु आप हरो।
कुंजबिहारी चरण आपके
वक्ष हमारे आप धरो। 13
अधरामृत सुख कर प्रिय माधव
विरह जन्य सब शोक हरे।
आत्म हृदय मन आनंदित हो
सुन वंशी सुर भाव भरे।
पी कर यह अधरामृत केशव
मिटें वासनाएँ गहरी।
मंत्रमुग्ध मादल मन सुनकर
दिव्य मधुर वह स्वर लहरी। 14
युग सम बीते पल छिन दिन सब
वन विहार जब आप गए।
सांध्य समय केशव जब लौटे
मुख निहार आनंद भए।
मधुर मनोहर सुंदर मुख पर
शोभित घुँघराली अलकें।
क्रूर विधाता ने क्यों रच दीं
नयन बंद करती पलकें। 15
हे केशव तुमसे मिलने को
पति पुत्र बंधु कुल छोड़े।
करी अवज्ञा उनकी हमने
तुमसे मन नाता जोड़े।
मधुर गान सुनकर हम भागे
रात अँधेरे तुम न मिले।
हम असहाय नारियाँ छलिया
क्यों तुम हमको छोड़ चले। 16
करते थे तुम नित्य ठिठोली
और प्रेम की मृदु बातें।
प्रेम भरी चितवन कान्हा की
थीं अमूल्य वो सौग़ातें।
है विशाल वक्षस्थल प्रभु का
श्री जी जहाँ निवास करें।
हृदय हुआ आसक्त आप पर
मिलन लालसा आत्म भरें। 17
सब ब्रज जन की पीड़ा हरता,
नष्ट सभी दुख-ताप प्रभो।
यह अति शुभ प्राकट्य आपका
कल्याणक जग आप प्रभो।
हे प्रभु इस आसक्त हृदय में
प्यारी छवि है मोहन की।
कोई औषधि दे दो कान्हा,
मिटे पीर इस जीवन की। 18
अंबुज कोमल जैसे प्रिय पग
कुच कठोर दृढ़ छातीं है।
कैसे रखें वक्ष पर श्री पग
हम गोपी सकुचातीं हैं।
जब ये पग भटकें जंगल में
पीर हृदय में जागी है।
जीवन माधव तुम्हें समर्पित
तन-मन प्रभु अनुरागी है। 19
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
गीत-नवगीत | स्व. राकेश खण्डेलवालविदित नहीं लेखनी उँगलियों का कल साथ निभाये…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सामाजिक आलेख
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- आप अभिमानी हैं या स्वाभिमानी ख़ुद को परखिये
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गौरैया तुम लौट आओ
- जीवन संघर्षों में खिलता अंतर्मन
- नकारात्मक विचारों को अस्वीकृत करें
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- भारतीय जीवन मूल्य
- भारतीय संस्कृति में मूल्यों का ह्रास क्यों
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- मानव मन का सर्वश्रेष्ठ उल्लास है होली
- मानवीय संवेदनाएँ वर्तमान सन्दर्भ में
- विश्व पर्यावरण दिवस – वर्तमान स्थितियाँ और हम
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- शिक्षक पेशा नहीं मिशन है
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
गीत-नवगीत
- अखिल विश्व के स्वामी राम
- अच्युत माधव
- अनुभूति
- अब कहाँ प्यारे परिंदे
- अब का सावन
- अब नया संवाद लिखना
- अब वसंत भी जाने क्यों
- अबके बरस मैं कैसे आऊँ
- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
- इस बार की होली में
- उठो उठो तुम हे रणचंडी
- उर में जो है
- कि बस तुम मेरी हो
- कृष्ण मुझे अपना लो
- कृष्ण सुमंगल गान हैं
- गमलों में है हरियाली
- गर इंसान नहीं माना तो
- गुलशन उजड़ गया
- गोपी गीत
- घर घर फहरे आज तिरंगा
- चला गया दिसंबर
- चलो होली मनाएँ
- चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
- ज्योति शिखा सी
- झरता सावन
- टेसू की फाग
- तुम तुम रहे
- तुम मुक्ति का श्वास हो
- दिन भर बोई धूप को
- नया कलेंडर
- नया वर्ष
- नववर्ष
- फागुन ने कहा
- फूला हरसिंगार
- बहिन काश मेरी भी होती
- बेटी घर की बगिया
- बोन्साई वट हुए अब
- भरे हैं श्मशान
- मतदाता जागरूकता पर गीत
- मन को छलते
- मन गीत
- मन बातें
- मन वसंत
- मन संकल्पों से भर लें
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 002
- मौन गीत फागुन के
- यूक्रेन युद्ध
- वयं राष्ट्र
- वसंत पर गीत
- वासंती दिन आए
- विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
- शस्य श्यामला भारत भूमि
- शस्य श्यामली भारत माता
- शिव
- सत्य का संदर्भ
- सुख-दुख सब आने जाने हैं
- सुख–दुख
- सूना पल
- सूरज की दुश्वारियाँ
- सूरज को आना होगा
- स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
- हर हर गंगे
- हिल गया है मन
- ख़ुद से मुलाक़ात
- ख़ुशियों की दीवाली हो
दोहे
- अटल बिहारी पर दोहे
- आदिवासी दिवस पर दोहे
- कबीर पर दोहे
- गणपति
- गुरु पर दोहे – 01
- गुरु पर दोहे – 02
- गोविन्द गीत— 001 प्रथमो अध्याय
- गोविन्द गीत— 002 द्वितीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 003 तृतीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 004 चतुर्थ अध्याय
- गोविन्द गीत— 005 पंचम अध्याय
- गोविन्द गीत— 006 षष्टम अध्याय
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 1
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 2
- चंद्रशेखर आज़ाद
- जल है तो कल है
- टेसू
- नम्रता पर दोहे
- नरसिंह अवतरण दिवस पर दोहे
- नववर्ष
- नूतन वर्ष
- प्रेम
- प्रेमचंद पर दोहे
- फगुनिया दोहे
- बचपन पर दोहे
- बस्ता
- बुद्ध
- बेटी पर दोहे
- मित्रता पर दोहे
- मैं और स्व में अंतर
- रक्षाबंधन पर दोहे
- राम और रावण
- विवेक
- शिक्षक पर दोहे
- शिक्षक पर दोहे - 2022
- संग्राम
- सूरज को आना होगा
- स्वतंत्रता दिवस पर दोहे
- हमारे कृष्ण
- होली
काव्य नाटक
कविता
- अनुत्तरित प्रश्न
- आकाशगंगा
- आस-किरण
- उड़ गयी गौरैया
- एक पेड़ का अंतिम वचन
- एक स्त्री का नग्न होना
- ओ पारिजात
- ओमीक्रान
- ओशो ने कहा
- और बकस्वाहा बिक गया
- कबीर छंद – 001
- कभी तो मिलोगे
- कविता तुम कहाँ हो
- कविताएँ संस्कृतियों के आईने हैं
- काल डमरू
- काश तुम समझ सको
- क्रिकेट बस क्रिकेट है जीवन नहीं
- गाँधी धीरे धीरे मर रहे हैं
- गाँधी मरा नहीं करते हैं
- गाँधीजी और लाल बहादुर
- गाडरवारा गौरव गान
- गोवर्धन
- चरित्रहीन
- चलो उठो बढ़ो
- चिर-प्रणय
- चुप क्यों हो
- छूट गए सब
- जब प्रेम उपजता है
- जय राम वीर
- जहाँ रहना हमें अनमोल
- जैसे
- ठण्ड
- तुम और मैं
- तुम जो हो
- तुम्हारी रूह में बसा हूँ मैं
- तुम्हारे जाने के बाद
- तेरा घर या मेरा घर
- देखो होली आई
- पत्ते से बिछे लोग
- पुण्य सलिला माँ नर्मदे
- पुरुष का रोना निषिद्ध है
- पृथ्वी की अस्मिता
- प्रणम्य काशी
- प्रभु प्रार्थना
- प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली
- प्रेम का प्रतिदान कर दो
- फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है
- बस तू ही तू
- बसंत बहार
- बोलती कविता
- बोलती कविता
- ब्राह्मण कौन है
- बड़ा कठिन है आशुतोष सा हो जाना
- भीम शिला
- मत टूटना तुम
- मिट्टी का घड़ा
- मुझे कुछ कहना है
- मुझे लिखना ही होगा
- मृगतृष्णा
- मेरा मध्यप्रदेश
- मेरी चाहत
- मेरी बिटिया
- मेरे भैया
- मेरे लिए एक कविता
- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
- मैं मिलूँगा तुम्हें
- मैं लड़ूँगा
- यज्ञ
- ये चाँद
- रक्तदान
- रक्षा बंधन
- वर्षा ऋतु
- वर्षा
- वसंत के हस्ताक्षर
- वो तेरी गली
- शक्कर के दाने
- शब्दों को कुछ कहने दो
- शिव आपको प्रणाम है
- शिव संकल्प
- शुभ्र चाँदनी सी लगती हो
- सखि बसंत में तो आ जाते
- सत्य के नज़दीक
- सीता का संत्रास
- सुनलो ओ रामा
- सुनो प्रह्लाद
- स्वप्न से तुम
- हर बार लिखूँगा
- हे केदारनाथ
- हे छट मैया
- हे क़लमकार
लघुकथा
- अंतर
- अनैतिक प्रेम
- अपनी जरें
- आँखों का तारा
- आओ तुम्हें चाँद से मिलाएँ
- उजाले की तलाश
- उसका प्यार
- एक बूँद प्यास
- काहे को भेजी परदेश बाबुल
- कोई हमारी भी सुनेगा
- गाय की रोटी
- डर और आत्म विश्वास
- तहस-नहस
- दूसरी माँ
- पति का बटुआ
- पत्नी
- पौधरोपण
- बेटी की गुल्लक
- माँ का ब्लैकबोर्ड
- मातृभाषा
- माया
- मुझे छोड़ कर मत जाओ
- म्यूज़िक कंसर्ट
- रिश्ते (डॉ. सुशील कुमार शर्मा)
- रौब
- शर्बत
- शिक्षक सम्मान
- शेष शुभ
- हर चीज़ फ़्री
- हिन्दी इज़ द मोस्ट वैलुएबल लैंग्वेज
- ग़ुलाम
- ज़िन्दगी और बंदगी
- फ़र्ज़
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
- कुण्डलिया - अटल बिहारी बाजपेयी को सादर शब्दांजलि
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - अपना जीवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - आशा, संकल्प
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - इतराना, देशप्रेम
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - काशी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गणपति वंदना
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गीता
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गणेश
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गोवर्धन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जलेबी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - झंडा वंदन, नमन शहीदी आन, जय भारत
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नया संसद भवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नर्स दिवस पर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नवसंवत्सर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पर्यावरण
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पहली फुहार
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पेंशन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बचपन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बम बम भोले
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बुझ गया रंग
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - भटकाव
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मकर संक्रांति
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मतदान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मानस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - विद्या, शिक्षक
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - शुभ धनतेरस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - संवेदन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - सावन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - स्तनपान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - हिन्दी दिवस विशेष
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - होली
- कुण्डलिया - सीखना
- कुण्डलिया – कोशिश
- कुण्डलिया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – यूक्रेन युद्ध
- कुण्डलिया – परशुराम
- कुण्डलिया – संयम
- कुण्डलियाँ स्वतंत्रता दिवस पर
- गणतंत्र दिवस
- दुर्मिल सवैया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – 001
- शिव वंदना
- सायली छंद - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - चाँद
- होली पर कुण्डलिया
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
- आज की हिन्दी कहानियों में सामाजिक चित्रण
- गीत सृष्टि शाश्वत है
- पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री विमर्श
- प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन
- प्रेमचंद का साहित्य – जीवन का अध्यात्म
- बुन्देल खंड में विवाह के गारी गीत
- भारत में लोक साहित्य का उद्भव और विकास
- मध्यकालीन एवं आधुनिक काव्य
- रामायण में स्त्री पात्र
- वर्तमान में साहित्यकारों के समक्ष चुनौतियाँ
- समाज और मीडिया में साहित्य का स्थान
- समावेशी भाषा के रूप में हिन्दी
- साहित्य में प्रेम के विविध स्वरूप
- साहित्य में विज्ञान लेखन
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी साहित्य में प्रेम की अभिव्यंजना
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं