"अपने दोषों पर पछ्तावा जो मन ही मन कर लेता हो
अपनी समाधि को जो खुद ही रह रह सँवारता छ्न्दों से
जिसके हर गूँगे उत्तर पर अक्सर सवाल हँस देते हैं
वह मैं हूँ बंधा हुआ केवल अपने स्वप्निल अनुबन्धों से"
- राकेश खण्डेलवाल
राकेश खण्डेलवाल पिछ्ले २१ वर्षों से यू.एस. ए. में हैं। काव्य लेखन लगभग ३५ वर्षों से नियमित है। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के अतिरिक्त इनकी एक पुस्तक "अमावास का चाँद" प्रकाशित हुई है।
लेखक की कृतियाँ
गीत-नवगीत
- अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
- अनुत्तरित प्रश्न
- अपाहिज व्यथा
- असलियत बस अँगूठा दिखाती रही
- अस्मिता खो गई
- आँसू पी लिए
- आज अनुभूतियाँ शब्द बनने लगीं
- आज उन्हीं शब्दों को मेरी क़लम गीत कर के लाई है
- आज फिर महका किसी की याद का चंदन
- आप
- आप उपवन में आये
- आप जिसकी अनुमति दें
- आस्था घुल रही आज विश्वास में
- इसीलिये मैं मौन रह गया
- उत्तर गुमनाम रहे
कविता - क्षणिका
कविता
नज़्म
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं