आप-फिर एक बार
काव्य साहित्य | कविता - क्षणिका स्व. राकेश खण्डेलवाल15 May 2011
रूप है चाँद सा, रूप है सूर्य सा रूप तारों सा है झिलमिलाता हुआ
भोर की आरती सा खनकता हुआ और कचनार जैसे लजाता हुआ
आपका रूप है चन्दनी गंध सा जो हवाओं के संग में बहकती रही
रूप की धूप से आपकी जो सजा मेरा हर दिन हुआ जगमगाता हुआ।
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