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दीपावली पर दोहे

 

दीप माल सब जल रहीं, करतीं प्रेम प्रकाश। 
मन अंतस दीपक जले, हृदय नेह आकाश। 
 
हर घर में उजियार हो, हर मन अंतस शांत। 
दीवाली हरती सदा, मन के सारे क्लांत। 
 
तेल-दीप की लौ कहे, जल तू सदा उजास। 
अंतर तम को हर सके, ऐसा करो प्रयास। 
 
लक्ष्मी आये साथ में, लेकर शुभ संकल्प। 
सुख समृद्धि शान्ति ही, जीवन के आकल्प। 
 
मिट्टी का दीपक कहे, छोटा हूँ पर ख़ास। 
हूँ ग़रीब के संग भी, हर जीवन की आस। 
 
भेद-भाव के जाल को, आज बुहारो आप। 
प्रेम-सुगंध बिखेर दो, मिटे प्रपंच प्रलाप। 
 
दीप जले तम भागता, हृदय जगाए आस। 
ख़ुशियों की लौ को जला, हरता मन का त्रास। 
 
धन जन को पूजित करें, श्रम का हो सम्मान। 
दीवाली का यश यही, ख़ुशियों का हो गान। 
 
रूठे मित्र मनाइए, यही मित्रता रीत। 
दीपों का त्योहार यह, अपनेपन का गीत। 
 
सुख-समृद्धि, स्नेह का, हर घर जलता दीप। 
दीपोत्सव मंगल बने, शुभ संकल्प समीप। 
 
दीपावली पर्व की सभी स्वजनों को कोटि कोटि शुभकामनाएँ!
सुशील शर्मा

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