एडवोकेट संजय श्री कृषभो
अन्यथा ज्ञात, संजय कुमार श्रीवास्तव
हाई कोर्ट लखनऊ बेंच, लखनऊ
शिक्षा:
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डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग (हीवेट पॉलिटेक्निक लखनऊ)
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एमबीए (पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी)
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एलएलबी (लखनऊ यूनिवर्सिटी)
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एलएलएम (एसआरएम यूनिवर्सिटी)
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पीएचडी लॉ रिसर्च स्कॉलर (चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी)
निवास स्थान: लखनऊ (उ.प्र.)
लेखक की कृतियाँ
नज़्म
- उदासियों में भी इश्क़ इंतेहा हो जाए
- उसे बिछड़ना था
- गर ग़मगीन हुआ मैं तो मुस्कुरा सकोगे
- थोड़ा वक़्त लगेगा
- बड़ी शिद्दत से इबादत की है मालिक
- बेवफ़ा तेरे काँटे को चुभने न दिया
- मेरा वुजूद तेरी नाराज़गी से पिघल जाता है
- याद कर रहे हैं बस, वो लज़्ज़त-ए-आह-ए-सहर-गही
- ये बारीक़ियाँ इश्क़ की सीख कर आया हूँ
- हवाएँ बहेंगी मगर शोर नहीं होगा
कविता
- अंतिम भ्रम का अवशेष बचूँगा
- अमावस्या की निशा
- अमिट रहे ये नेह तुम्हारा
- आशीष आपका बना रहे
- इतना ही तुमसे कहना है
- इसी धरा से पाए काया, इसी मृदा में मिल ही जाना . . .
- उन ग़रीबों के लिए तुमने क्या किया?
- और हम जी सकेंगे जी भरकर
- कलुषित हो, मानुष किस ओर चला है. . .?
- कोई दूर हुआ है जैसे
- कोटिशः अभिनंदन मेरी प्रिये!
- कोशिश करते हैं इन्हें पढ़ने की
- कोशिश है
- क्या यूँ ही तलाशता रह जाऊँगा तुमको
- चहुँ ओर शिखंडी बैठे हैं
- चेतना अजर अमर है
- जब ये सब सुनूँगा तो काँप जाऊँगा
- जलयान जल को चीरता जब चल पड़ा है
- जीवन सरल था
- तुम अतीत नहीं हो माँ!
- तुम अनीति से नहीं डरे थे
- तुम थोड़ा सँभलकर चलो, मैं तो अमर हूँ
- तुम प्रेम कैसे करोगे?
- निःसंदेह अजेय हो तुम
- निःसंदेह पवित्र हो, तुम मेरे मित्र हो
- पढ़ो लिखो आगे बढ़ो
- पर साथ तुम्हारा रहा प्रिये
- पिता कभी मरते नहीं!
- प्रणाम! हे शक्ति स्वरूपिणी! सृष्टि स्वयं में लिए खड़ी हो
- प्रिये तुम पूरी कशिश हो
- प्रेम
- बिछड़ना अब मुमकिन नहीं
- भाईसाहब ‘भाईसाहब’ तुम कहते रहो मैं सुनता रहूँ
- भारत कण कण में जाग उठा
- मशाल हूँ मैं, मेरा धर्म है रोशनी करना
- मित्रता में कपट कर
- मिथ्याचारी काँप जाएँ, ऐसी गर्जना करो
- मुझे आत्मा शरीर समझाने लगा
- मृत्यु गीत गुनगुनाओ
- मेरा जीवन है तुमसे मिलना
- मेरा सिद्धांत जीवन है
- मेरे पूज्य ‘बाबू’ आँखों में नमी सी
- मेरे प्रेम का तिरस्कार, मुझे सहर्ष है स्वीकार
- मैं तुम्हारा हृदय, तुम मेरे स्पंदन कहलाओगे
- मैं बुझूँगा, ये तमस छँट जाए बस
- मैंने सर्वस्व की तिलांजलि दी
- ये तुम्हारा बल नहीं, मेरा समर्पण है प्रिये!
- ये नंदिनी किसकी है, लोग आपस में पूछेंगे
- ये रंग ज़िंदगी के हैं
- ये सोचना भी मत मेरे क़दम थमेंगे
- विजयी भवः, विजयी भवः, आगे बढ़ो अजेय हो!
- वो मैं ही हूँ
- शकुनि को जीवन से निकाल दीजिये
- शरीर पार्थिव हो गया
- सब कुछ ख़त्म हो गया
- समाजवाद मुखर हो, ऐसी गर्जना करो
- सागर तट पर
- सुनो! तुम भाग्य के छल से मत डरना
- सोनम सोनम पुकारना चाहता हूँ
- स्वयं को न छलो आराध्य
- हम कितने ग़लत थे
- हर घड़ी मृत्यु को जिया
- हर जंग बेवज़ह थी
- हर हर महादेव
- हिस्से में था अपमान मिला, विस्मृत करके देखो समक्ष
- हे अमोघ! हे ब्रह्मबाण! अरि के प्राणों को हरो हरो
- हे जननी!
- हे मनुष्य! विध्वंस के स्वामी रुक जाओ
कविता - क्षणिका
कविता-मुक्तक
कहानी
खण्डकाव्य
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं