मेरे पूज्य ‘बाबू’ आँखों में नमी सी
काव्य साहित्य | कविता संजय कवि ’श्री श्री’1 Jul 2022 (अंक: 208, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
मुझे याद है,
मेरा हँसता हुआ मुख;
उनकी धुँधली आँखों की चमक,
उनका अद्भुत सुख।
मेरी हार पर,
उनका साहस बढ़ाना;
जीत की,
नई युक्ति सुझाना।
ख़ाली होते थे तो भी,
जीवंत थे मेरे जन्मदाता के हाथ;
और अब कितना निष्प्राण है,
ये जग का साथ।
जब वो थे तो मैं ख़ुश था,
आज नहीं हैं तो आँखों में नमी सी है;
तिरस्कृत हूँ मैं,
प्रेम, स्नेह, अनुराग की कमी सी है।
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