जब ये सब सुनूँगा तो काँप जाऊँगा
काव्य साहित्य | कविता संजय कवि ’श्री श्री’1 Jun 2024 (अंक: 254, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
उसी आग की लौ से वो आनंदित थे,
जिस आग से कभी मैं जल गया था,
सोचा भी नहीं; कि
कुछ बातें ऐसी हो जाती हैं,
जो मन मस्तिष्क में बस जाती हैं;
और लील जाती हैं;
सारी भावनाओं को,
उत्तेजना और आकर्षण को;
आह!
मेरा काँपता वुजूद वो कैसे भूले होंगे,
उन बातों के सिलसिले में हँसे होंगे;
और कैसे ये सोच भी नहीं पाए होंगे,
कि अनकही वेदना मैं भाँप जाऊँगा,
जब ये सब सुनूँगा तो काँप जाऊँगा;
जब ये सब सुनूँगा तो काँप जाऊँगा!
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