अश्रु जल
काव्य साहित्य | कविता संजय अनंत15 Apr 2024 (अंक: 251, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
अश्रु जल का क्या है
कब कहाँ क्यों छलकेगा
नहीं कह सकते
कभी रोटी के लिए
कभी बेटी के लिए
सब कुछ होने पर भी
कुछ नहीं होने पर भी
अकेले में भी
और मेले में भी
अश्रु जल की कोई जात नहीं
कोई रंग रूप क़द काठी नहीं
मंदिर में छलक सकता है
मस्जिद में सज़दा करते भी
तुम बँटे हुए हो
पर वो सब की आँखों में
एक सा ही है
कभी ख़ुशी में बहता है
तो कभी तुम्हारी निराशा को
शब्द प्रदान करता है
उसका बहना और रुकना
तुम्हारे वश में नहीं
वो सब में समाया
ब्रह्म की तरह
पर प्रगट होता है
अपनी इच्छा से
वो रूप रंग में नहीं
भावना में बसता है
उसे किस नाम से पुकारते हो
क्या फ़र्क पड़ता है
जो तुम्हारे लिए
अश्रु जल या आँसू है
किसी और के लिए
‘आब ए चश्म’ है,
तमिल के लिए ‘कन्नीर’
तो बंगाली के लिए ‘ओश्रु’ है
अंग्रेज़ों की आँखों का टीर्स
स्पेनिश की आँखों से बहने वाला ‘लेग्रीमस’ ही तो है
नाम शब्द उसे बयाँ नहीं करते
वो तो अपनी बात ख़ुद कहता है जब आँखों से निकलता है
न जाने कितने महाकवि
महाकाव्य रच गए
जब हृदय मन के भाव
तुझ में मिश्रित हो
आँखों से छलके
शायद ब्रह्म की तरह
तू रंग रूप भाषा प्रान्त
लिंग जाति में भेद नहीं करता
सब में एक स्वरूप है
बिछड़ते बेटे को देख
माँ की आँखों से छलकता है
सिंह का ग्रास बनते
मृग छौने को देख
बेबस हिरणी की
आँखों से छलकता है
यहीं एकरूपता उसे महान बनाती है
ईश्वर का प्रतिरूप बनाती है
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