अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

अंतर प्रवाह

 

तुम शायद फिर आओ
हम फिर नदी के किनारे बैठ
मौन ही सही, शब्द बंधन से मुक्त
कुछ साझा करेंगे, जिसे
हमारे अंतर मन ही समझ पाए
वेदना, पीड़ा, सुख, आनंद
ये तो प्रवाह है तरंग है
जो तुम से निकल मुझ में प्रविष्ट हो
पुनः तुम तक पहुँचने को आतुर
अब तुम ही कहो संसार की
कौन सी भाषा का शब्द संसार
इसे व्यक्त कर पाएगा
जो तुम्हारे मौन से संतृप्त है
अंतर मेरे छू कर जाता है
शब्दहीन किन्तु वृहत रच जाता है
मनन चिंतन में समाहित हो
एकरस हो जाता है
शायद आदि ब्रह्म ने इस
शब्दहीन अंतर वार्ता को
हम दोनों के लिए ही रचा
इस एकांत की अपनी गरिमा है
शब्द, प्रहार बन
इसकी मर्यादा तोड़ेंगे
जो तुम्हें मुझे स्वीकार नहीं
ये आशा नहीं स्वप्न नहीं
विश्वास है फिर तुम्हारे
सानिध्य बैठ
शब्दहीन अंतर प्रवाह से
बाते करेंगे, सर्वत्र फैले
मौन को नमन करते
आनंद के चरम को
अंतर धारण करेंगे
धैर्य की गागर न छलके
प्रतीक्षा हो न अंतहीन
नदी तट पर पसरे मौन से
पूछता हु, मन को ढाढ़स देता हूँ
सुनो ये मेरा स्वप्न नहीं
व्योम में गुंजायमान्‌ आकाशवाणी है
विश्वास है, अनंत तप का तेज है
तुम्हें फिर आना है
तुम्हें फिर आना है . . .!!

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं