अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

हनुमान जन्मोत्सव पर सुंदरकांड विशेष

 

हिंदू पंचांग के अनुसार, हनुमान जन्मोत्सव हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि 23 अप्रैल को मनाई जाएगी। इस बार हनुमान जन्मोत्सव मंगलवार को पड़ने से यह और भी ख़ास हो जाता है क्योंकि माना जाता कि हनुमान जी का अवतार दिवस मंगलवार ही था। इसीलिए मंगलवार को हनुमान जी का दिन माना जाता है। इस तिथि के अलावा कई जगहों पर यह पर्व कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भी मनाई जाती है। मान्यतानुसार, हनुमानजी को भगवान शिव का अंशावतार माना जाता है। जिस प्रकार राम जी को भगवान विष्णु का अंशावतार माना जाता है। राम जी का अवतरण चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी को और हनुमान जी का अवतरण एक सप्ताह बाद चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पिता केसरी व माता अंजनी के घर हुआ था। शास्त्रों के अनुसार, आज भी पृथ्वी पर हनुमान जी वास करते हैं। यह कहा जाता है कि हनुमान जी को चिरंजीवी का आशीर्वाद प्राप्त है। इसी कारण उनके अवतरण दिवस को हनुमान जयंती न कहकर हनुमान जन्मोत्सव कहा जाता है।

हनुमान जन्मोत्सव पर लोग सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए पूजा-अर्चना के साथ ही हनुमान चालीसा व रामायण के सुंदरकांड का पाठ करते हैं। माना जाता है कि सुंदरकाण्ड के पाठ से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं। सुंदरकाण्ड के पाठ से बजरंगबली की कृपा बहुत ही जल्द प्राप्त हो जाती है।

वास्तव में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकाण्ड की कथा सबसे अलग है। हनुमानजी, सीताजी की खोज में लंका गए थे और लंका त्रिकुटांचल पर्वत पर बसी हुई थी। त्रिकुटांचल पर्वत यानी यहाँ 3 पर्वत थे। पहला सुबैल पर्वत, जहाँ के मैदान में युद्ध हुआ था।

दूसरा नील पर्वत, जहाँ राक्षसों के महल बसे हुए थे। तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत, जहाँ अशोक वाटिका निर्मित थी। इसी वाटिका में हनुमानजी और सीताजी की भेंट हुई थी। इस काण्ड की सबसे प्रमुख घटना यहीं हुई थी, इसलिए इसका नाम सुंदरकाण्ड रखा गया। संपूर्ण श्रीरामचरितमानस भगवान श्रीराम के गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती है, सुंदरकाण्ड एक मात्र ऐसा अध्याय है जो श्रीराम के भक्त हनुमान की विजय का काण्ड है।

मनोवैज्ञानिक नज़रिए से देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला काण्ड है, सुंदरकाण्ड के पाठ से व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्राप्त होती है, किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए आत्मविश्वास मिलता है। राम चरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार हर तरह की समस्या से नजात पाने के लिए सुंदरकांड के पाठ से बेहतर कोई उपाय नहीं है। शास्त्रों के अनुसार जीवन में आने वाला हर बड़े से बड़ा संकट हनुमान जन्मोत्सव पर सुंदरकांड का पाठ करने से टाला जा सकता है। कहा जाता है इस शक्तिशाली पाठ के आगे हर संकट अपने घुटने टेक देता है।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

सांस्कृतिक आलेख

कविता

सामाजिक आलेख

सिनेमा चर्चा

लघुकथा

यात्रा-संस्मरण

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं