अबीर, गुलाल, रंग
काव्य साहित्य | कविता सोनल मंजू श्री ओमर1 Apr 2024 (अंक: 250, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
अबीर, गुलाल, रंग है, होली का हुड़दंग है।
रंगों के नशे में, सबके मन मलंग हैं॥
अबीर, गुलाल, रंग है . . .
सबके मन को हर्षायी, फागुन की बहार आई।
जन-जन गाएँ फगुआ, दिलों में उमंग है॥
अबीर, गुलाल, रंग है . . .
खेतों में सरसों खिले, पीले-पीले फूल हिलें।
हरी-भरी धरा पर, उड़ते विहंग हैं॥
अबीर, गुलाल, रंग है . . .
भर-भर लाए पिचकारी, रंग दी चुनर सारी।
साजन रँगे सजनी को, अजब ये तरंग है॥
अबीर, गुलाल, रंग है . . .
नीला, पीला, लाल, गुलाबी, बचे न कोई ज़रा भी।
प्रेम के रंग में भिगोकर, रंगों अंग-अंग हैं॥
अबीर, गुलाल, रंग है . . .
चिप्स खाओ, पापड़ खाओ, मीठी-मीठी गुझिया खाओ।
तरह-तरह के मिष्ठानों से, मुँह में घुला रसरंग है॥
अबीर, गुलाल, रंग है . . .
होली का त्योहार है, रंगों की बौछार है।
झूम-झूम के नाचों गाओ, घुटी आज भंग है॥
अबीर, गुलाल, रंग है . . .
सभी धर्मों को प्यारा, ये होली पर्व न्यारा।
भूल के आपसी रंजिशें, सब गले मिलते संग हैं॥
अबीर, गुलाल, रंग है . . .
अबीर, गुलाल, रंग है, होली का हुड़दंग है।
रंगों के नशे में, सबके मन मलंग हैं॥
अबीर, गुलाल, रंग है . . .
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