वो अगर मेरा हमसफ़र होता
शायरी | ग़ज़ल डॉ. शोभा श्रीवास्तव15 Apr 2024 (अंक: 251, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
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उससे बढ़कर न मोतबर होता।
वो अगर मेरा हमसफ़र होता।
नज़र से वो उतर गया, वरना,
नज़र में बस वही क़मर होता।
काट देते न जो वो पर मेरे,
एक दिन मैं तो चाँद पर होता।
काश कुरबत में शाम रुक जाती,
रात होती न फिर सहर होता।
कौन मुझसे नज़र मिला पाता,
साथ माँ-बाप का अगर होता।
प्यार वाली बिसात में फँस कर
इधर होता कभी उधर होता।
हुनर है तुम में जीने का ‘शोभा’
हर किसी का नहीं जिगर होता।
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