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शिक्षक नित-नित नव इतिहास बनाते हैं

 

दूर अँधेरा कर जीवन से, जोत अखंड जलाते हैं। 
सूरज सा तप-तप कर हर पल ज्ञान किरण बिखराते हैं। 
सरस्वती के ये सेवक नित्य अपना धर्म निभाते हैं। 
विश्व धरा पर शिक्षक नित-नित नव इतिहास बनाते हैं। 
 
शिष्य राम सा पाकर गुरुकुल में फिर गुरु वशिष्ठ हुए। 
ज्ञान-सुधा की चाह में सांदीपनि कान्हा को अभीष्ट हुए। 
एकलव्य गुरु भक्ति करके जग में परम विशिष्ट हुए। 
गुरु सदा ऐसे शिष्यों की गरिमा से संतुष्ट हुए। 
 
शिष्य वही जो गुरु पद वंदन कर निज धर्म निभाते हैं। 
विश्व धरा पर शिक्षक नित-नित नव इतिहास बनाते हैं
 
शिक्षक का गुणगान करें, शब्दों में इतनी शक्ति कहाँ। 
गीत लिखें शिक्षक पर बोलो कवि में वह अभिव्यक्ति कहाँ। 
एकलव्य सी होती अब तो शिष्यों में अनुरक्ति कहाँ
राम, कृष्ण, अर्जुन बन जाए, जग में ढूँढ़ो व्यक्ति कहाँ।
 
बिरले ही गुरु भक्ति में राधाकृष्णन बन जाते हैं। 
जिनके जन्मोत्सव को हम सब शिक्षक दिवस मनाते हैं। 
 
शिक्षक ने जो ज्ञान दिया उस ज्ञान का हरदम ध्यान करें। 
ज्ञानामृत पाकर शिक्षक से जीवन सफल, महान करें। 
यश, कीर्ति पाकर हम अपने पद का हर पल मान करें। 
न भूलो शिक्षक को जो यह गौरव तुम्हें प्रदान करें। 
 
शिष्य बने कँगूरा, शिक्षक नींव-शिला बन जाते हैं। 
युगों-युगों तक हम शिक्षक की गरिमा को दोहराते हैं। 
 
दूर अँधेरा कर जीवन से, जोत अखंड जलाते हैं। 
सूरज सा तप-तप कर हर पल ज्ञान किरण बिखराते हैं। 
सरस्वती के ये सेवक नित्य अपना धर्म निभाते हैं। 
विश्व धरा पर शिक्षक नित-नित नव इतिहास बनाते हैं। 

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