कसमसाती ज़िन्दगी है हर जगह
शायरी | ग़ज़ल डॉ. शोभा श्रीवास्तव1 Nov 2024 (अंक: 264, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
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कसमसाती ज़िन्दगी है हर जगह
क्यों परेशां आदमी है हर जगह
आपकी बातों ने वो जादू किया,
ज़िंदगी राहत भरी है हर जगह
फिर वही तक़रार छेड़ी आपने,
फिर वही बेचारगी है हर जगह
है नदी ख़ामोश, लहरें सो गयीं
अब तो बस तिश्नालबी है हर जगह
आपके बिन तीरगी थी हर तरफ़,
आपसे अब रोशनी है हर जगह
हौसला तिनके को देती है हवा,
जो यहाँ कूच-ए ज़मीं है हर जगह
होश में शायद नहीं कुछ कह सकूँ,
काम की ये मयकशी है हर जगह
चांद की सौग़ात ले रात आ गयी,
हर सुहागन खिल उठी है हर जगह
लौट कर तुम आओगे इक दिन ज़रूर,
दो घड़ी की दुश्मनी है हर जगह
मैंने ‘शोभा’ खोलकर दिल रख दिया,
अब तो मर्ज़ी आपकी है हर जगह
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विनय कुमार श्रीवास्तव 2024/10/25 06:34 PM
शानदार अभिव्यक्ति,... दो घड़ी की दुश्मनी है हर जगह। वाह! सुंदर गजल के लिए लेखिका बधाई की पात्र हैं।