रक़ीबों से हमको निभानी नहीं है
शायरी | ग़ज़ल डॉ. शोभा श्रीवास्तव1 Jan 2025 (अंक: 268, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
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रक़ीबों से हमको निभानी नहीं है
हमें शाम रोकर बितानी नहीं है।
ज़रा दायरे से निकल कर तो देखो,
हसीं कम सनम ज़िंदगानी नहीं है।
हक़ीकत से कैसे निगाहें चुराऊँ,
ये साया मेरा है, कहानी नहीं है।
नज़ारे वफ़ा के तो अब तक न बदले,
हवा में मगर वो रवानी नहीं है।
समझ ही सको, बारहा ना जिसे तुम,
हमें बात अब वो सुनानी नहीं है।
वरक़ इक तेरे नाम का भी हो ‘शोभा’
क़िताबें कोई ख़ानदानी नहीं है।
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