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दीप हथेली में

अंगारों पर पाँव पड़े जब-जब भी क़दम बढ़ाया है। 
दर्द-ओ ग़म ने मरहम लेकर ज़ख़्मों को सहलाया है॥
 
चारागर को क्या समझाएँ, जख़्म नहीं क्यों भरते हैं, 
जो भी मिला मसीहा बनकर, उसने नमक लगाया है॥
 
चेहरे बदल-बदल कर मिलना एक नई परिपाटी है, 
मतलब का जो है वह अपना, बाक़ी खेल पराया है॥
 
चाँद चुरा कर लाने वाले, तारों से भी हार गये, 
जुगनू को मुट्ठी में लेकर मन अपना भरमाया है॥
 
लेकर दीप हथेली में बच्चे ने चुनौती क्या दे दी, 
अँधियारा जाने क्यों ख़ुद पर तब बेहद शरमाया है॥
 
सावन की रिमझिम से कह दो आ जाए इस बस्ती में 
सूना पनघट, झांझर चुप है, ख़ामोशी का साया है॥
 
माचिस लेकर घूम रहे हो तो इतना भी जान लो, 
चिंगारी से जो खेलेगा, ख़ुद न कभी बच पाया है॥

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