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रात-दिन यूँ बेकली अच्छी है क्या 

 

मिसरा ए सानी: आपके बिन ज़िन्दगी अच्छी है क्या
बह्र:  2122    2122        212
 
रात-दिन यूँ बेकली अच्छी है क्या 
आपके बिन ज़िन्दगी अच्छी है क्या 
 
हाशिये पर रख चले जब शम्‌अ को 
तुम कहो फिर रोशनी अच्छी है क्या 
 
बेसुरी हो तान लय भटकी हुई 
फिर भला वो रागिनी अच्छी है क्या 
 
मैं इबादत में वफ़ा के हूँ अभी 
और कोई बन्दगी अच्छी है क्या 
 
बेसबब यादों में वो आने लगे 
दिल बता ये बेख़ुदी अच्छी है क्या 
 
जो हिला के रख दे ख़ुशियों का शज़र 
आँसुओं की वो नमी अच्छी है क्या 
 
रंग 'शोभा' हों न सा'अत के जहाँ 
वो मुसर्रत आपकी अच्छी है क्या 
 
सा'अत= समय; मुसर्रत/मसर्रत= ख़ुशी, प्रसन्नता

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