रात-दिन यूँ बेकली अच्छी है क्या
शायरी | ग़ज़ल डॉ. शोभा श्रीवास्तव15 Mar 2024 (अंक: 249, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
मिसरा ए सानी: आपके बिन ज़िन्दगी अच्छी है क्या
बह्र: 2122 2122 212
रात-दिन यूँ बेकली अच्छी है क्या
आपके बिन ज़िन्दगी अच्छी है क्या
हाशिये पर रख चले जब शम्अ को
तुम कहो फिर रोशनी अच्छी है क्या
बेसुरी हो तान लय भटकी हुई
फिर भला वो रागिनी अच्छी है क्या
मैं इबादत में वफ़ा के हूँ अभी
और कोई बन्दगी अच्छी है क्या
बेसबब यादों में वो आने लगे
दिल बता ये बेख़ुदी अच्छी है क्या
जो हिला के रख दे ख़ुशियों का शज़र
आँसुओं की वो नमी अच्छी है क्या
रंग 'शोभा' हों न सा'अत के जहाँ
वो मुसर्रत आपकी अच्छी है क्या
सा'अत= समय; मुसर्रत/मसर्रत= ख़ुशी, प्रसन्नता
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ग़ज़ल
- अर्श को मैं ज़रूर छू लेती
- करूँगा क्या मैं अब इस ज़िन्दगी का
- ख़त फाड़ कर मेरी तरफ़ दिलबर न फेंकिए
- डरता है वो कैसे घर से बाहर निकले
- तीरगी सहरा से बस हासिल हुई
- तुम्हारी ये अदावत ठीक है क्या
- दर्द को दर्द का एहसास कहाँ होता है
- धूप इतनी भी नहीं है कि पिघल जाएँगे
- फ़ना हो गये हम दवा करते करते
- रात-दिन यूँ बेकली अच्छी है क्या
- वो अगर मेरा हमसफ़र होता
- हमें अब मयक़दा म'आब लगे
- ख़ामोशियाँ कहती रहीं सुनता रहा मैं रात भर
गीत-नवगीत
- अधरों की मौन पीर
- आओ बैठो दो पल मेरे पास
- ए सनम सुन मुझे यूँ तनहा छोड़कर न जा
- गुरु महिमा
- गूँजे जीवन गीत
- चल संगी गाँव चलें
- जगमग करती इस दुनिया में
- ठूँठ होती आस्था के पात सारे झर गये
- तक़दीर का फ़साना लिख देंगे आसमां पर
- तू मधुरिम गीत सुनाए जा
- तेरी प्रीत के सपने सजाता हूँ
- दहके-दहके टेसू, मेरे मन में अगन लगाये
- दीप हथेली में
- फगुवाया मौसम गली गली
- बरगद की छाँव
- मौन अधर कुछ बोल रहे हैं
- रात इठला के ढलने लगी है
- शौक़ से जाओ मगर
- सावन के झूले
- होली गीत
- ख़ुशी के रंग मल देना सुनो इस बार होली में
कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं