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बे-सबब दिल ग़म ज़दा होता नहीं

 

बहर: रमल मुसद्दस महज़ूफ़
अरकान: फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
तक़्ती'‌अ: 2122    2122    212
 
बे-सबब दिल ग़म ज़दा होता नहीं
ख़ुद ब ख़ुद ये हादसा होता नहीं
 
सोच की अपनी वो इक तस्वीर है
आदमी ख़ुद से जुदा होता नहीं
 
चाहते हद से न ज्यादा तुम अगर
इस तरह वो बे-वफ़ा होता नहीं
 
बात बच्चों की अगर होती नहीं
तो कभी वो बे-हया होता नहीं
 
कर वफ़ा के नाम अपनी ज़िंदगी
प्यार बिन इसमें मज़ा होता नहीं
 
कोई ऐसी शय कहाँ दुनिया में है
आशना जिससे ख़ुदा होता नहीं
 
गुम-शुदा हैं लोग उस ख़त की तरह
जिस लिफ़ाफ़े पर पता होता नहीं
 
सच हमेशा बोलती है शायरी
झूठ ‘शोभा’ कुछ छुपा होता नहीं

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