शोभा श्रीवास्तव मुक्तक - 001
काव्य साहित्य | कविता-मुक्तक डॉ. शोभा श्रीवास्तव1 Apr 2020 (अंक: 153, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
1.
ख़त मेरे नाम लिख दिया होता।
कुछ तो पैगाम लिख दिया होता॥
मेरे मोहसिन, मेरी मोहब्बत का,
जो है अंजाम लिख दिया होता॥
2.
ज़िंदगी के रंग तो हर पल बदलते हैं।
वक़्त के तेवर भी जब देखो मचलते हैं॥
रोशनी के फूल झड़ते हैं अँधेरों में,
दर्द की बारिश में पत्थर भी पिघलते हैं॥
3.
सतरंगी सपनों की मैं कोई रीत नहीं लिखने वाली।
चूड़ी, बिंदी और गजरे पर गीत नहीं लिखने वाली।
चारण सा व्यवहार करूँ, यह मेरे बस का काम नहीं,
मैं उन्मादी हथकंडों को जीत नहीं लिखने वाली॥
4.
अपनी आदत से बाज़ आ जाते।
काश उल्फ़त से बाज़ आ जाते॥
इश्क़ की बंदगी न की होती,
हम इबादत से बाज़ आ जाते॥
5.
तेरी नज़रों में जब ज़माना था।
प्यार मुझ पर नहीं लुटाना था
छोड़ो, तुमको भी क्या कहें अब हम
दिल की क़िस्मत में टूट जाना था॥
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