कोरे काग़ज़ की छाती पर, पीर हृदय की लिख डालें
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत डॉ. शोभा श्रीवास्तव1 Jul 2024 (अंक: 256, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
जीवन की इस पगडंडी में, धूप छाँव सब अपना लें।
कोरे काग़ज़ की छाती पर, पीर हृदय की लिख डालें।
मौसम का है काम बदलना, समय-समय पर बदलेगा।
घोर निराशा के बादल में, तारा आस का चमकेगा।
सम्भव नहीं बदलना जिसको, ख़ुद को हम उसमें ढालें।
कोरे काग़ज़ की छाती पर, पीर हृदय की लिख डालें।
मिल जाती है कभी-कभी तो अनचाही सी चीज़ हमें।
लुट जाता है मगर कभी वो, जो था बहुत अज़ीज़ हमें।
समय की कश्ती चलती जाती, उड़ती जाती हैं पालें।
कोरे काग़ज़ की छाती पर, पीर हृदय की लिख डालें।
पतझड़ आए या बसंत हो, पेड़ों ने है मान किया।
जेठ महीना, धूप घनेरी, हर राही को छाँव दिया।
ऐसे ही हम भी जीवन की, उलझी कड़ियाँ सुलझा लें।
कोरे काग़ज़ की छाती पर, पीर हृदय की लिख डालें।
अपने हाथ है हंँसना-रोना, जो चाहे चुन सकते हो।
बदल रहे इस समय की मधुरिम, गुंजन भी सुन सकते हो।
लेकिन पहले भीतर झाँकें, अपने मन को समझा लें।
कोरे काग़ज़ की छाती पर, पीर हृदय की लिख डालें।
जीवन की इस पगडंडी में, धूप छाँव सब अपना लें।
कोरे काग़ज़ की छाती पर, पीर हृदय की लिख डालें।
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