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गूँजे जीवन गीत

साँसों में सरगम, धड़कन में बिखरा है संगीत। 
प्रेम नगर के चौराहों पर गूँजे जीवन गीत॥
 
मन वीणा के सातों सुर क्यों करते हैं झंकार, 
कोयल कुहुक-कुहुक कर करती है किसका मनुहार
जाने किसकी बाट निहारे मेरी अल्हड़ प्रीत
प्रेम नगर के चौराहों पर गूँजे जीवन गीत॥
 
अब के सावन में भीगा-भीगा आँचल न भाए
बरखा जब-जब बरसे, जाने कैसी अगन लगाए
लाज निगोड़ी समझाती है मुझको जग की रीत
प्रेम नगर के चौराहों पर गूँजे जीवन गीत॥
 
रह-रह कर मैं दर्पण देखूँ, मन ही मन मुसकाऊँ
खोल झरोखा गलियों में मैं अपने पलक बिछाऊँ
सोचूँ रह-रहकर कैसा होगा मेरा मनमीत
प्रेम नगर के चौराहों पर गूँजे जीवन गीत॥

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