तीरगी सहरा से बस हासिल हुई
शायरी | ग़ज़ल डॉ. शोभा श्रीवास्तव15 Apr 2024 (अंक: 251, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
2122 2122 212
तीरगी सहरा से बस हासिल हुई।
ज़िन्दगी जीने के ना-क़ाबिल हुई॥
शाम ठंडी आह भरती रह गयी,
रात भी मेरे लिये बोझिल हुई।
मैं तेरी बस्ती से पूछूँगा कभी,
रोशनी क्यों दश्त में शामिल हुई।
चल कहीं हम दूर चल दें ए सनम,
ये गली अब इश्क़ की क़ातिल हुई।
बज़्म में ‘शोभा’ ठहर जाओ अभी,
तुमसे ही रंगीन अब महफ़िल हुई।
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