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लाख पर्दा करो ज़माने से

 

बहर: ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू
अरकान:  फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़्तीअ: 2122    1212    22
 
लाख पर्दा करो ज़माने से
इश्क़ छुपता नहीं छुपाने से
 
ऐसे धुँधला गई तेरी यादें
जैसे ख़त हों कोई पुराने से
 
आप ख़ुश हैं, ख़ुदा की रहमत है
बच सके हम न ग़म उठाने से
 
आजकल होश ही कहाँ हमको
जब से गुज़रे तेरे ठिकाने से
 
फ़िक्र से होता कुछ नहीं हासिल
बात बनती है मुस्कुराने से 
 
शाम ढलते ही लौट आएँगे
जो परिंदे हैं कुछ सयाने से
 
हम न बदलेंगे ये यक़ीं कर लो
बाज़ आ जाओ आज़माने से
 
मैं तिरा शहर छोड़ जाऊँगा
तू अगर ख़ुश हो मेरे जाने से
 
छोड़ दुनिया की बात को ‘शोभा’
क्या मिलेगा यूँ दिल जलाने से

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