तारे छत पर तेरी उतरते हैं
शायरी | ग़ज़ल डॉ. शोभा श्रीवास्तव1 Jul 2024 (अंक: 256, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
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तारे छत पर तेरी उतरते हैं।
वो तेरी शोख़ियों पे मरते हैं।
नींद अब रात भर नहीं आती,
याद की रौ से हम गुज़रते हैं।
जबसे आँखों में जगह दी तुमने,
आइने टूट कर बिखरते हैं।
सादगी आपकी क़यामत है,
आपकी सादगी से डरते हैं।
कौन आया कि रंग बिखरा है,
शाख़ से फूल सारे झरते हैं।
छोड़ दो बात अब तो लोगों की,
लोग अब वादे से मुकरते हैं।
अबके बस्ती में चाँद उतरेगा,
हम सितारों से बात करते हैं।
अश्क बन जाते हैं मोती ‘शोभा’
प्यार के नाम पर जो झरते हैं।
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