आओ बैठो दो पल मेरे पास
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत डॉ. शोभा श्रीवास्तव15 Apr 2022 (अंक: 203, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
जब धूप घनेरी हो, लहरा दो नीला आँचल।
सूखी हुई बग़िया में, बरसा हो जैसे बादल॥
तुम नाद बन के गूँजो, पर्वत को छू के देखो।
चाहत की हर गली में, जन्नत को छू के देखो॥
बैठो ज़रा मेरे पास, जी लें वफ़ा के दो पल॥
सूखी हुई बग़िया में, बरसा हो जैसे बादल॥
एहसास का मुजस्सिम, तस्वीर तुम हसीं हो।
कोई जगह नहीं है, जहाँ तुम सनम नहीं हो॥
आँखों में मुझको रख लो, रहता है जैसे काजल॥
सूखी हुई बग़िया में, बरसा हो जैसे बादल॥
सावन में नीर बन कर, उतरी तुम्हीं गगन से।
क्या होती है महक ये, पूछे कोई चमन से॥
बस नाम से तुम्हारे, बाग़ों में होती हलचल॥
सूखी हुई बग़िया में, बरसा हो जैसे बादल॥
जब धूप घनेरी हो, लहरा दो नीला आँचल॥
सूखी हुई बग़िया में, बरसा हो जैसे बादल॥
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