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तू मधुरिम गीत सुनाए जा

न वीणा के तार छेड़कर सोन चिरैया गाए जा। 
टूट गया है साज़ मगर तू मधुरिम गीत सुनाए जा॥
 
उँगली के पोरों में रखना मन के चंचल तारों को, 
बहने देना मस्त हवा में सुर भीगे झंकारों को। 
धरती अंबर गुंजित कर दे ऐसे छेड़ सितारों को, 
बौनापन क़ायम है लेकिन दे आवाज़ चिनारों को। 
 
अपने हाथों में ही अपने मन की डोर थमाए जा। 
टूट गया है साज़ मगर तू मधुरिम गीत सुनाए जा॥
 
गागर में जो सागर भर दे तू वह अविरल धारा बन, 
मन सरिता की धार तेज़ है चल तू स्वयं किनारा बन। 
उच्शृंखल तरुणाई की ख़ातिर तू सही नज़ारा बन, 
डूब रहे जो तिमिर निशा में उनके लिए सितारा बन। 
 
लेकिन पहले अपनी ख़ातिर बेहतर राह बनाए जा। 
टूट गया है साज़ मगर तू मधुरिम गीत सुनाए जा॥
 
मन का तो बस काम यही है तुझको यह भरमाएगा, 
आड़ी-तिरछी चाल में अपनी कितने नाच नचाएगा। 
जो मन को निज वश में करके बच्चों सा सहलाएगा, 
मन की शक्ति का जादू वह इस जग को दिखलाएगा। 
 
भटक रहे मानव को सुरमय गीतों से बहलाए जा। 
टूट गया है साज़ मगर तू मधुरिम गीत सुनाए जा॥
 
मन वीणा के तार छेड़कर सोन चिरैया गाए जा। 
टूट गया है साज़ मगर तू मधुरिम गीत सुनाए जा॥

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