मुस्कुराने की अदा रखते हैं
शायरी | नज़्म डॉ. शोभा श्रीवास्तव15 May 2022 (अंक: 205, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
हम यूँ ज़ख़्मों की दवा रखते हैं।
मुस्कुराने की अदा रखते हैं॥
ज़ख़्म बन जाए जहाँ नग़म-ए-दिल
दिल में दिलकश वो फ़जां रखते हैंं।
रंग-ओ ख़ुश्बू से आशना हैं जो
अपने हाथों में हिना रखते हैं॥
धूप से वो नहीं डरते हैं कभी
पास जो बादे-सबा रखते हैं।
टीस जब हद से गुज़र जाती है
होठों पर गीत नया रखते हैं।
जो घरौंदों को जला देते हैंं
जेब में वो ही हवा रखते हैं।
उनके लफ़्जों की जिरह पर न जा
वो निगाहों में वफ़ा रखते हैं।
बल्ब बिजली का लजा जाता है
जब भी देहरी पे दिया रखते हैं।
बहुत सुकून से कटता है सफ़र
संग हम माँ की दुआ रखते हैं।
सर पे अपने खु़दा की नेमत है
हम तो मुट्ठी में जहाँ रखते हैं।
हम तो जैसे थे, वैसे हैं 'शोभा'
आप ही दिल में क्या-क्या रखते हैं।
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