अपने पैरों पे जो खड़ा होगा
शायरी | ग़ज़ल संजीव प्रभाकर15 Apr 2024 (अंक: 251, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
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अपने पैरों पे जो खड़ा होगा,
उसका क़द हर जगह बड़ा होगा।
वक़्त के साथ जो न बदला वो,
धूल खाता हुआ पड़ा होगा।
मशवरा सब सहीह, बेजा है,
कोई ज़िद पे अगर अड़ा होगा।
हार उसकी हुई, त'अज़्ज़ुब है!
अपने लोगों से ही लड़ा होगा।
आ रहीं आहटें क़यामत की,
पाप का भर गया घड़ा होगा।
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