ब्रज के लोकगीत और रसिया गायन
भारत समाचार 20 Mar 2024इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली के फ़ाउंटेन लॉन में 9 मार्च, 2024 को ब्रज के लोकगीत और रसिया गायन सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में भरतपुर के ब्रज क्षेत्र के कलाकार श्री जितेंद्र पराशर एवं ग्रुप द्वारा मन मोहक प्रस्तुति दी गई।
बसंत पंचमी से ब्रज क्षेत्र में होली के त्योहार की शुरूआत हो जाती है और इसके आयोजन में सांगीतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण है। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की एक स्वायत्तशासी संस्था उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में 15 लोक कलाकारों ने ब्रज के पारंपरिक लोक-संगीत और नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसमें फूलों की होली, मयूर-रास और चरकुला नृत्य आदि प्रमुख प्रस्तुतियाँ थीं।
कार्यक्रम के आरंभ में श्री जितेंद्र पाराशर ने गणपति वंदना ‘महाराज गजानन आओ जी’ प्रस्तुत किया। इसके पश्चात एक प्रसिद्ध कृष्ण भजन ‘करते हो तुम कन्हैया मेरा काम हो रहा है’ की प्रस्तुति के बाद एक छोटे विराम के पश्चात शुरू हुआ गायन-सह-नृत्य का मन भावन कार्यक्रम। भगवान श्री कृष्ण के जन्म और उनके बाल-लीला के रूप में नृत्य की प्रथम प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों का मन मोह लिया। तत्पश्चात् मयूर रास की प्रस्तुति हुई। इस विशेष नृत्य आयोजन के परिचय स्वरूप कलाकार ने काव्यात्मक अंदाज़ में बताया कि ‘बरसाने’ में एक मोर कुटी थी। राधा रानी उस मोर कुटी में नित्य प्रति दर्शन के लिए जाती थीं। एक बार की बात है, श्रावण मास में भीनी-भीनी बूँद पड़ रही थी, घुँघराली-काली घटा छाई हुई थी। लेकिन राधा रानी तो अपने संकल्प की पक्की थीं। चाहे बिजली कड़के, चाहे अम्बर बरसे लेकिन उन्हें मयूर के दर्शन करने थे, सो करने ही थे। संयोगवश उस दिन बहुत इंतज़ार के बाद भी जब उन्हें मोर का दर्शन नहीं हुआ तब उन्होंने अपने साँवरे घनश्याम को पुकार लगाई—
“आया सावन झूम के, अजि मोरा करें पुकार
तू ना आयो साँवरे, मैं तुम्हें ढूँढ़-ढूँढ़ गई हार
जब से राधा के हृदय में, आन बसे घनश्याम
श्याम बन गए राधिका, राधा बन गई श्याम”
इस गीत के ऊपर राधा-कृष्ण और गोपी-गोपिकाओं के रूप में नृत्य-मंडली की मनोहारी प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों के श्रद्धा-विनत मन-मयूर को झूमने-नाचने पर मजबूर कर दिया।
इसके बाद चरकुला नृत्य की अद्भुत एवं विस्मयकारी प्रस्तुति हुई। ब्रज क्षेत्र की इस प्रचलित नृत्य विधा में नर्तक अपने सिर पर बहु-स्तरीय वृत्ताकार पिरामिडों को रखकर कृष्ण भक्ति गीतों पर नृत्य करते हैं। इस नृत्यांजलि में ग्रुप की दो नृत्यांगनाओं ने अपने सिर पर 108-108 जलते दियों के साथ ख़ूबसूरत नृत्य प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का समापन फूलों की होली के साथ हुआ जिसमें उपस्थित दर्शकों ने भी आनंद निमग्न होकर खुले मन से सहभाग किया और राधा-कृष्ण तथा गोपियों के ऊपर फूलों की वर्षा की। इस नृत्य प्रस्तुति के दौरान एक पल के लिए ऐसा लगा कि श्वास जैसे ठहर गई हो और कोई सुगंधित वायु हमारे हमारे मन-मकरंद को सुवासित कर गई हो। ऐसी प्रतीति हुई कि कि आस-पास एक नए काव्य का जन्म हो रहा है। सभी दर्शकों का संगीत में सहभागी बनना जैसे परमात्मा की गहन संप्रतीति करा गया।
रिपोर्ट: राघवेन्द्र पाण्डेय
ब्रज के लोकगीत और रसिया गायन
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