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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की रजत जयंती समारोह 2025

हमारी संस्कृति, परंपरा और पहचान का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है मातृभाषा: प्रो. पी. राधिका

 

चेन्नई, 21 फरवरी, 2025। 

“मातृभाषा हमारी संस्कृति, परंपरा और पहचान का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। भाषा ही हमें एक-दूसरे के साथ जोड़ती है और अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने में सहायक सिद्ध होती है। भारत जैसे विशाल देश में सभी एक-दूसरे के साथ इसी भाषाई अस्मिता के कारण ही जुड़े हुए हैं। भारत सरकार ने भी नई शिक्षा नीति 2020 के तहत त्रिभाषा सूत्र को अनिवार्य बनाकर भाषाई महत्ता को उजागर किया है। यूनेस्को ने भी मातृभाषा दिवस की रजत जयंती के अवसर पर उसकी महत्ता को रेखांकित करते हुए यह घोषणा की कि मातृभाषा का आदर करना हमारा कर्त्तव्य है।” 

उक्त उद्गार उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास की कुलपति (प्रभारी) प्रो. पी. राधिका ने मातृभाषा दिवस की रजत जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने अपनी मातृभाषा मलयालम के माध्यम से केरल के अलग-अलग प्रांतों में हो रहे भाषा प्रयोग एवं भाषांतर के स्वरूप से परिचित कराया। उन्होंने लोकगीतों का मंचन व उनकी समृद्धि हेतु लोकगीत गायन लिए प्रेरित किया तथा श्रोताओं के आस्वादन हेतु मलयालम की प्रसिद्ध कवयित्री सुगत कुमारी की कविता ‘कल के लिए’ का वाचन किया। 

विशेष अतिथि डॉ. सुभाष जी. राणे ने इस बात पर बल दिया कि भाषा के अभाव में हम सब केवल जन्तु मात्र बनकर रह जाएँगे, क्योंकि भाषा ही वह साधन है जो हमें समाज-सांस्कृतिक प्राणी के रूप में परिवर्तित होने में सहायक सिद्ध होती है। उन्होंने गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल में बोली जाने वाली अपनी मातृभाषा कोंकणी की ऐतिहासिकता, उसके प्रचार-प्रसार व उसकी विकास यात्रा पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि हमारे देश से अनेक भाषाएँ और बोलियाँ लुप्त हो चुकी हैं, और कुछ लुप्त होने के कगार पर हैं। अतः इस देश के ज़िम्मेदार नागरिक होने के कारण यह हम सबका कर्त्तव्य बनाता है कि मातृबोलियों और मातृभाषाओं की सुरक्षा करना। 

राजाजी प्रशिक्षण महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. आर. बी. हुल्लोली ने अपनी मातृभाषा मराठी में बात करते हुए कहा कि भारत में जन्म लेने वाला हर कोई जननी के ऋण से उऋण नहीं हो सकता। हमें अपनी मातृभाषा को नहीं भूलना चाहिए। साथ ही दूसरों की भाषाओं का भी माँ रखना चाहिए। 

पी.जी. विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जी. नीरजा ने अतिथियों का स्वागत-सम्मान करते हुए अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भाषाई अस्मिता, सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषिकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। उन्होंने यह याद दिलाया कि बांग्लादेश में अपनी मातृभाषा की अस्मिता को सुरक्षित रखने के लिए जो संघर्ष 1952 में किया गया था, उसे के परिणाम स्वरूप 21 फरवरी को यूनेस्को ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में स्वीकार किया। 

इस अवसर पर छात्रों ने भोजपुरी, तमिळ, गुजराती, बांग्ला, तेलुगु, उड़िया, कन्नड़, मलयालम, ब्रज आदि भाषाएँ और बोलियों में स्वरचित कविताएँ, गीत, लोकगीत एवं अपने विचारों को व्यक्त किया। 

कार्यक्रम की शुरूआत अतिथियों व शिक्षकों द्वारा सरस्वती दीप प्रज्वलन से हुआ। छात्राओं ने तमिळ, हिंदी और तेलुगु भाषाओं में राज्य गीत एवं ईश्वर वंदना प्रस्तुत किया। 

बी.एड. विभाग के प्रवक्तागण डॉ. अजीता कुमारी व करण कुमार सक्सेना भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे। 

कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए एसिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मृत्युंजय सिंह ने अपनी मातृबोली भोजपुरी में संबोधित किया और इस अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस से जुड़ी उन आंदोलनकारी घटानाओं पर प्रकाश डाला। डॉ. जी. नीरजा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। 

प्रस्तुति

सुश्री पूजा पाराशर
शोधार्थी, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, 
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास
टी. नगर, चेन्नई–600017

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