अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

ऋषि मुनि मानव दानव के तप से देवराज तक को बुरा लगता

 

अपने ही लोग ज़हर बुनते हैं
अपने अपनों की तरक़्क़ी में सिर धुनते हैं! 
  
अपनों के बीच बड़ी साज़िश होती 
अपनों के मध्य बड़ी रंजिश होती 
अपनों के बनाए व्यूह से बच पाना 
तो सबसे बड़ा क़िला फ़तह होता है! 
 
अपनों की नज़र से छिपकर तप करना 
मनोरथ सिद्धि के पूर्व में किसी को 
लक्ष्य गंतव्य कभी नहीं उजागर करना 
वर्ना ऋषि मुनि मानव दानव के तप से
देवराज इन्द्र तक को बुरा लगता है! 
 
कुछ पाना हो तो कुछ खोना ही होता 
रिश्ते नाते मित्र कुटुम्ब से दूर हो जाना होता 
जीवन में पहला प्रतिद्वंद्वी हित मित्र गोत्री होता
प्रतिस्पर्धी का प्रतिस्पर्धी उसका साथी संगी होता! 
 
कोई भी प्रतियोगी प्रतिभागी अपने प्रतियोगी का 
कभी नहीं हितचिंतक होता बल्कि निंदक ही होता 
किसी की सफलता पर मातम मनाने वाला पहला 
अपरिचित शत्रु नहीं, परिचित हित मित्र कुटुम्ब होता! 
 
किसी की उपलब्धि पर सबसे अधिक दुखी 
स्वजाति अपना यार अपना नाता रिश्तेदार होता 
अपनों की बुरी नज़र से बच पाना बड़ा दुष्कर होता
लाख भलाई करो अपने जाति गोत्र भाई बंधु का 
उनकी प्राथमिकता सूची में तुम्हारा नाम नहीं होता! 
  
चाहे बदनाम हो जाओ भाई भतीजावाद के नाम से 
पर ये लोग हर अवसर पर तुमसे शत्रुता पाले रहता! 
 
गोत्र मित्र हित कुटुम्ब जो तुम्हारे पास में रहते 
अक़्सर वही तुम्हारे पास आने में विलंब करते 
बहुत सोचना पड़ता पड़ोसी को पड़ोसी घर जाने में 
अहं वहम पद प्रतिष्ठा छोटा बड़ा बहुत सोचना पड़ता 
पड़ोसी शत्रुता और गोतिया घृणा-द्वेष से ओत-प्रोत होता! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं