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आत्मा से महात्मा-परमात्मा बनने का सोपान ये मनुज तन

 

ज्ञान अनादि, अनश्वर सनातन है, 
ज्ञान आदि काल से अद्यतन है! 
कोई ज्ञान सद्यः आविष्कृत नहीं है, 
अखिल ब्रह्माण्ड सा ये पुरातन है! 
 
कोई प्राणी अज्ञानी नहीं होता है, 
ज्ञानकोष तो प्राणियों का मन है! 
ज्ञान नहीं कही से आयातित होते, 
ज्ञान तो आत्मा का विस्तारण है! 
 
ज्ञान लिया-दिया सामान नहीं है, 
यह जीव का जैविक स्व धन है! 
ज्ञान किताबी-ख़िताबी भी नहीं है, 
ज्ञान गुणन-मनन, आत्म चेतन है! 
 
गुरु, गुरुकुल, ग्रंथ और अध्ययन, 
चित्त की चैतन्यता का साधन है! 
जिनके चित्त जितने चैतन्य होते, 
उनमें उतना ज्ञान का प्रकटन है! 
 
ज्ञान नहीं सबमें हू-ब-हू एक जैसा, 
ज्ञान स्थिति का प्रस्तुतीकरण है! 
वेदपुराण, बाइबल आदि का ज्ञान, 
विगत मानव मन का संचयन है! 
 
सब जीव-जन्तुओं को मिला ज्ञान, 
जनक के जिन्स का बीज बपन है! 
ज्ञान विरासती, जीवात्मा का रमन, 
शिक्षण नहीं, ज्ञान स्वत:स्फुरण है! 
 
ज्ञान बिकता नहीं है हाट-बाज़ार में, 
ज्ञान सभी जीवों का गुण सूत्रण है! 
बँधा-बँधाया भर ज्ञान नहीं होता है, 
ज्ञान अनन्त, अनादि व सनातन है! 
 
किसी के ज्ञान में जकड़ जाना तो, 
स्व अंतर्मन के ज्ञान का हनन है! 
सतत ज्ञान क्षरण, संचरण होता है
जिसमें, वह सिर्फ़ मानव जीवन है! 
 
आत्मा से महात्मा, परमात्मा तक, 
बनने का सोपान ये मनुज तन है! 
क्यों व्यर्थ में भ्रमित हो जाए मन, 
बँधा-बँधाया ज्ञान, जीवन बंधन है! 
 
विकसित करें आत्मज्ञान को इतना, 
कि बन जाओ सुप्रिय आत्मीयजन! 
बन जाओ महात्मा गुरु बुद्ध, जिन, 
परमात्मा कि राम, कृष्ण भगवन है!

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