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दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह सोढ़ी की गाथा

जब देश धर्म ख़तरे में था, 
हिंदुत्व कर रहा था चीत्कार
औरंगजेब ध्वस्त कर रहा था 
मठ मंदिर देवालय गुरुद्वारा 
हिन्दुओं का कर रहा था
धर्मांतरण या फिर संहार! 
 
ऐसे ही संकट की घड़ी में 
सोढ़ी राय गुरु गोविन्द ने
प्रभु राम की मर्यादा भक्त्ति, 
भगवान कृष्ण का गीता ज्ञान
और सहस्त्रबाहु की ले तलवार, 
लिया था असिधर सिंह अवतार! 
 
एक संत, सिपाही, साहित्यकार बनकर, 
अपने तीन पुश्त सर्ववंश की बलि देकर
देश-धर्म-जाति का किया था उद्धार! 
 
जब कश्मीरी हिन्दुओं पर 
औरंगज़ेब का सुनकर फ़रमान
“छः माह में मुस्लिम बन जा 
नहीं तो होगा क़त्लेआम“
नवम गुरु तेग बहादुर 
जब हुए परेशान ये जानकर
कि देश धर्म को चाहिए
किसी महान आत्मा का बलिदान! 
 
तब दशम गुरु बालक गोविंद ने 
अपने गुरु पिता को भेद बताया, 
आप से बड़ा कौन हो सकता महान 
हे पिताश्री करो आत्म बलिदान! 
 
गद्‌गद्‌ हो नवम गुरु ने
कश्मीरी हिन्दुओं को आश्वस्त कर 
औरंगज़ेब को भेज दिया पैग़ाम
“पहले मुझे मुस्लिम बना लो 
फिर शेष देश होगा मुसलमान“
गो-ब्राह्मण-हिन्दुत्व की ख़ातिर 
नवम गुरु ने गर्दन कटा, दे दी जान! 
 
देख पिता के कटे सीस को 
बालक गुरु गोविंद के श्रीमुख से
निकला था उद्गार—
“साधन हेत इन जिनी करी, 
सीस दिया पर सी न उचारी। 
धर्म हेत साका जिनी किया, 
सीस दिया पर सिरुर न दिया।”
 
ऐसे ही महामानव जो धर्म हित में
कटे पिता के शीश पर करते नहीं हाहाकार
ऐसे ही महामानव जो देश हित में 
पुत्र जोरावर और फतेह सिंह की शहादत पर 
रोए नहीं थे ज़ार-बेज़ार! 
 
ऐसे ही महामानव जो जाति हित में 
वार के सुत चार कहते—
'चार मुए तो क्या हुआ 
जीवित कई-कई हज़ार!”
 
ऐसे ही महा मानव पर 
हम देते निर्गुण ब्रह्म को भी नकार! 
 
ऐसे ही महा मानव की 
हम करते प्रतिमा पूजन भी स्वीकार! 
 
ऐसे ही महा मानव होते 
निर्गुण ब्रह्म के सगुण अवतार! 
 
ईश्वरीय अवतार वही 
जो ईश्वरीय काम करे
देश धर्म जाति संस्कृति हेतु 
सर्वस्व आत्मबलिदान करे! 
 
भय भूख आतंक ग़ुलामी से 
जो जन गण का परित्राण करे! 
 
वही हमारे ईश्वर हैं 
वही हमारे हैं भगवान
राम हमारे, कृष्ण हमारे, 
बुद्ध हमारे, जिन हमारे, 
नानक, गोविन्द और भी सारे
जनमन और वतन के भगवान! 
 
पर इन भगवानों के मध्य 
कौन वह उग्रकर्मा परशुराम? 
जिसे तुमने अवतार कहा, 
जिसने एक नहीं इक्कीस बार
किया वीर मनुज संहार! 
 
जिसने ब्रह्म अहं के पोषण में 
किया मानव रक्त का व्यापार! 
 
जिससे टूट गई वीर क्षत्रिय जाति 
बन गए हज़ारों मनुज जाति कुजाति
जो ख़ुद की जाति नाम कहते शर्माती 
जो अपनी उपाधि तक को छुपाती! 
 
कैसा धर्म? कैसी ब्राह्मण संस्कृति? 
कैसे आज हम हैं मानव पिता मनु की संतति? 
कि जन्म लेने के पूर्व ही मनु पुत्रों को 
अनेक गालियाँ चिपका दी जाती! 
 
“सुपच, किरात, कोल, कलवारा, 
वर्णाधम तेली कुम्हारा” (मानस)! 
“वर्द्धकी नापित गोप:आशप:
वणिक किरात कायस्थ मालाकार कुटुम्बिन:
वेरटो मेद चाण्डाल दास श्वपच कोलका 
इति अंत्यजा समाख्याता–-(व्यास स्मृति) 
'चित्रगुप्तात्मजा सर्वे कायस्था शूद्र संज्ञका:'
 (वर्ण विवेक चंद्रिका) 
क्षत्रियस्यच वीर्येण ब्राह्मणस्य योषिति। 
भूमिहार्य्य भवत्पुत्रो ब्रह्मक्षत्रस्य वेषभृत॥' (व. वि. च.) 
'क्षत्रात्करण कन्यायं राजपुत्रो वभूव ह। 
राजपुत्र्यान्तु करणादागरीति प्रकीर्ति त:॥'
 (ब्रह्म वैवर्त पुराण) 
और न जाने क्या-क्या? 
 
पलटो धर्मशास्त्र स्मृति आख्यान
और छाप लो श्रीमद गाली पुराण! 
 
'एवं नि:क्षत्रिये लोके कृते तेन महात्मना। 
उत्पादितान्यन्यन्यानि ब्रह्मणैवेद पारगै:। '
धन्य! धन्य! महात्मा परशुराम! 
 
इक्कीस बार क्षत्रिय संहार कर 
किया गालियों का आविष्कार! 
इन्हीं गालियों को समेटने
पीढ़ी दर पीढ़ी परमवीर शौण्डीर
कार्तवीर्य आर्य सहस्त्रार्जुन
राम, कृष्ण, गौतम, महावीर, नानक 
और दशम गुरु सोढ़ी राय 
गोविन्द सिंह जी बनकर आए! 
 
लौह जल अमृत छक/छकाकर
ख़ुद बने थे सिंह और पाहुल विधि से
सभी बिखरी जातियों को 
एकजुट करके खालसा सिंह बनाए! 
 
'अब मैं कहूँ आपनी कथा, 
सोढ़ी कुल उपजिया यथा'
(विचित्र नाटक) 
'रंगरेज गुरु का बेटा है, 
कलाल गुरु का लाल है' कहकर
जाति-वर्ण विहीन समाज बनाए! 
 
पर अजर-अमर परशुराम से पीछा
वो भी कहाँ छुड़ा पाए
जहांगीर और औरंगज़ेब की बर्बरता 
और तिलक जनेऊ की रक्षा में 
जिन्होंने अपने प्रपिता गुरु अर्जुनदेव 
और पिता गुरु तेग बहादुर
और चार पुत्रों की शहादत पर 
उफ़ तक नहीं किया था! 
 
उन्हें गंगू ब्राह्मण की धोखाधड़ी ने 
उनके दो मासूम पुत्रों 
और माता गुजरी की हत्या का
मर्मान्तक दुःख ही तो दिया था। 
–-विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखण्ड-814101। 

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