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मनुस्मृति के भेदभावपूर्ण ज्ञान से सनातन धर्म का नहीं होगा उत्थान 

 

मनुस्मृतिकार ने शूद्र ही नहीं 
ब्राह्मण का भी किया मानमर्दन
मनुस्मृतिकार ने नारी जाति के लिए 
कहा नहीं मर्यादित वचन 
मनुस्मृति में भरमार है 
एक दूसरे का विरोधी भावयुक्त कथन 
मनुस्मृति एक समय की रचना नहीं 
बहुत सारे प्रक्षिप्त वर्णन 
मनुस्मृति का रचनाकार एक नहीं 
बहुत ने किए विविध लेखन! 
 
मनुस्मृतिकार ने शूद्र नहीं 
ब्राह्मण का भी किया चरित्र हनन 
ब्राह्मणों को पृथ्वी का स्वामी 
बनाने के क्रम में बनाया अधम 
मनुस्मृतिकार मनुजपिता मनु नहीं, 
थे भृगु और भार्गव ब्राह्मण 
मनुस्मृतिनुसार वर्णाश्रम में 
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य ये द्विज वर्ण 
आरंभ में तीन वेद तीन देव तीन वर्ण 
तीन गुरु व तीन आश्रम! 
(मनु अ 1/58-59, 10/4) 
 
शूद्र वर्ण नहीं जाति, जो बनते 
द्विज वर्णों के होने से वर्णाधम, 
शूद्र नहीं अलग वर्ण, शूद्र तीनों 
द्विज के वर्णसंकरता से उत्पन्न, 
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य में अनुलोम 
प्रतिलोम विवाह से शूद्र जन्म, 
शूद्र बनते जब तीनों द्विज वर्ण 
एक दूसरे का अपना लेते कर्म 
शूद्र नहीं कोई स्थिर वर्ण ये 
जाति स्थिति जो बदलते रहते वर्ण! 
 
मनुस्मृतिकार द्वारा समय-समय 
पर विशेषाधिकार देने के कारण 
ब्राह्मण वर्ण का हुआ अधोपतन, 
बने लूटनेवाले वैश्य शूद्र का धन
ब्राह्मण का कर्म सीमित हो गया 
वेद पठन-पाठन औ’ यज्ञ-यजन 
वेदपाठ श्रुति स्मरण सिर्फ़ विप्र 
बटुक के लिए आठ वर्ष से आरंभ 
मनुस्मृतिकार ने उपनयन से बाँधा 
वर्णों बीच भेदभावपूर्ण शिक्षण! 
(मनु अ 11/11-13, 2/36, 10/3, 11/12-13) 
  
क्षत्रिय औ’ वैश्य बालकों का 
ग्यारह बारह वर्षों में होता उपनयन, 
ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद है 
ब्राह्मणों का विधि-विधान यज्ञ-नियम, 
क्षत्रिय वैश्य त्रिवेद नहीं, करते 
धनुर्वेद आयुर्वेद कृषि वित्त ज्ञानार्जन, 
वेदपाठ विप्रों तक परिसीमन से 
गुरुकुल में कम हुआ वेदाध्ययन, 
आगे वेदपाठ निरुपयोगी, कृषि 
वाणिज्य सैन्यकर्म उपयोगी साधन! 
(मनु अ 2/36) 
 
मनुस्मृतिकार ने विप्र की आजीविका 
हेतु वर्जित किया दैहिक श्रम, 
केवल पठन-पाठन व यज्ञ-यजन 
वृत्ति से विप्रों का घटा अर्थोपार्जन, 
याज्ञिक पुरोहितों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी, 
यजमान से होने लगी अनबन 
पुरोहिताई पाने के लिए वशिष्ठ व 
विश्वामित्र लड़ते रहते थे हरदम
विप्र वामदेव व विश्वामित्र को क्षुधापूर्ति 
हेतु अपनाना पड़ा आपद्धर्म! 
(मनु अ 10/106-107) 
 
सतयुगी राजा हरिश्चन्द्र काल से 
ब्राह्मण होने लगा बदहाल विपन्न 
निःसंतान हरिश्चन्द्र ने वरुणदेव से 
नरमेध शर्त पर पाया पुत्र रत्न 
रोहित के सोलह वर्ष के होने तक 
हरिश्चन्द्र ने निभाया नहीं वचन 
तब क्षुब्ध वरुण ने हरिश्चन्द्र को 
उदर रोग से पीड़ित किया भीषण 
ऐसा प्रतीत होता कि सतयुग में 
अंधविश्वासी थे राजा रंक सर्वजन! 
 
हरिश्चन्द्र-रोहित ने मशवरा किया 
खोज निकाला अजीगर्त ब्राह्मण 
जिसने सौ गौ के बदले तीन पुत्रों में 
मध्यम शुन:शेप किया अर्पण 
जब शिशु को बलिवेदी में बाँधने व 
वध करनेवाला ना मिला शर्मण 
तो अजीगर्त दो सौ और गोधन ले 
तैयार हुआ काटने पुत्र की गर्दन 
मनुस्मृति ने नैतिक व मानवता का 
विप्र को दिया नहीं मार्गदर्शन! 
 (यज्ञपशु वधिक ब्राह्मण कहलाते शर्मन 
जिससे शर्मा उपाधि चलन) 1
(मनु अ 10/105, 1-ओशो) 
 
मनुस्मृतिकार ने अजीगर्त के इस 
शर्मनाक कर्म को कहा आपद्धर्म 
अजीगर्त बेशर्म पिता, जो तीन सौ 
गाय पाने के लालच में बने दुर्जन 
मनुस्मृतिकार ने ऐसे भार्गव ब्राह्मण 
के पाप को माना नहीं दुष्कर्म 
क़ायदे से आदर्श पिता वे जो पुत्र 
रक्षा में ख़ुद करे बलिदान समर्पण 
मनुस्मृति में विप्र हेतु नैतिक आदर्श का 
नहीं मानदंड सिर्फ़ पाखण्ड! 
(अजीगर्त: सुतं हंतमुपासर्पदबु भुक्षितः न चालिप्यत पापेन-10/105) 
 
ये आपद्धर्म क्या? जब किसी वर्ण का 
निज कर्म से चले नहीं जीवन 
तो वे वर्ण अपने निचले वर्ण के विहित 
कर्म करके करते भरण-पोषण 
ब्राह्मण के लिए आपात काल में भी 
करने योग्य कार्य में था प्रतिबंध 
मनुस्मृति का लक्ष्य विप्र को बेकाम या 
कम प्रयत्न में बनाना संपन्न 
विप्र तीन दिन दूध बेचे तो शूद्र, 
सात दिन सुरा बेचे तो वैश्य महाजन! 
(मनु अ 10/92-93) 
 
ऐसे में सैकड़ो हज़ारों गोधन दान लेकर 
विप्र करें सिर्फ़ दूध का सेवन 
शूद्र होने के डर से विप्र अधिक दूध से 
करने लगा दुग्धाभिषेक पूजन 
मनुस्मृतिकार ने ब्राह्मणों को बना दिया 
लोभी लालची भिक्षुक कृपण 
ये कैसा विधान वामदेव विश्वामित्र 
कुकुर मांस खाकर बने रहे ब्राह्मण 
भार्गव ने विप्र हेतु ऐसे लिखे विधान कि 
विप्र छवि का हुआ नुक़्सान! 
(मनु अ 10/106-108) 
 
मनुस्मृतिकार ने विप्र गृह आए 
‘अतिथि देवो भवः’का किया अपमान 
विप्र ख़ुद से निम्न वर्ण के अतिथि का 
करते नहीं आवभगत सम्मान 
भृगु ने विप्र का द्विज गृह में अग्रपंक्ति 
में खान-पान किया इंतज़ाम 
यद्यपि मनुस्मृति एक आचरण संहिता है 
पर विप्र हेतु नहीं सद्ज्ञान 
मनुस्मृति के अध्ययन से ब्राह्मण का 
कभी होगा नहीं चरित्र निर्माण! 
 
मनुस्मृतिकार कहते ब्राह्मण की 
श्रेष्ठता ज्ञान से, क्षत्रियों का पराक्रम 
वैश्यों की श्रेष्ठता धन से शूद्र की श्रेष्ठता 
उम्र से आँकने का प्रावधान 
भृगु कथन दस वर्ष का ब्राह्मण 
अस्सी वर्षीय क्षत्रिय का पिता समान 
नब्बे वर्ष जिए जो शूद्र तभी वो पाएगा 
द्विज वर्णों से मान सम्मान 
मनुस्मृति के ऐसे तत्वज्ञान पढ़कर 
द्विज वर्ण में हो जाता अभिमान! 
(मनु अ 2/155, 2/137) 
 
मनुस्मृति के भेदभावपूर्ण ज्ञान से 
सनातन धर्म का नहीं होगा उत्थान
जो हिन्दू मनुस्मृति पढ़ेगा उसमें 
ऊँच-नीच घृणाद्वेष भाव होगा प्रधान 
परिचित बुज़ुर्ग को प्रणिपात करने का 
निर्णय लेगा जाति-वर्ण को जान 
मनुस्मृति के पक्षपातपूर्ण विधान बने 
जातिवाद धर्मांतरण का परिणाम 
मगर मनुस्मृति के दहन से बुराई का 
होगा नहीं उन्मूलन औ’ कल्याण
बल्कि शोषित श्रमिक का पद प्रक्षालन 
का द्विज वर्ण चलाए अभियान! 
 
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ 
से नारी हुई पूजा का सामान 
दस उपाचार्य से एक आचार्य, 
सौ आचार्य से एक पिता, हज़ार पिता से 
एक माता श्रेष्ठ विधान, मगर 
अग्र कथन माता पिता से आचार्य महान 
भृगु ने नारी को वेदाध्ययन उपनयन 
अधिकार दिया नहीं पुरुष समान 
मनुस्मृतिकार ने नारी को बार-बार 
व्यभिचारिणी कहके किया अपमान! 
(मनु अ 3/56, 2/145-148, 9/19-21) 
 
मनुस्मृति ने ब्राह्मण की धर्मपत्नी 
होने पर भी नारी को कहा अधम 
उर्वशी गणिका पुत्र वशिष्ठ हुए विप्र, 
पर पत्नी अक्षमाला रही अपावन 
नारी बचपन में पिता अधीन, यौवन में 
पति संग, वृद्धा पुत्र के रक्षण 
नारी कभी छोड़ी जा सकती नहीं स्वतंत्र 
नारी की नियति रहना परतंत्र 
आचार्य ब्रह्मा मूर्ति, पिता मूर्ति प्रजापति, 
माँ पृथ्वी, भाई स्वोमृर्तिरात्मन:! 
(मनु अ 9/23, 9/3, 2/226) 
 
मनुस्मृति है भृगु व भार्गव ब्राह्मण 
की अनुदार प्रवृति का व्याख्यान 
भार्गव परशुराम थे मातृहंता भातृहंता 
क्षत्रियहंता पर बन गए भगवान 
परशुराम के वे भाई जो मातृभक्त थे 
दुनिया जानती नहीं उनके नाम 
किसी पुत्र द्वारा माँ का वध कहीं नहीं 
जायज़ पर भार्गव बने अनजान 
मनुस्मृतिकार ने मनु के आदेश व 
मानवता के ख़िलाफ़ रचा संविधान! 
 
आज मनुस्मृति के विप्र प्रसंग के कुतर्क 
से आहत होता ब्राह्मण मन 
मनुस्मृतिकार ने ब्राह्मण वर्ण का 
महिमामंडन हेतु किया है छल-छंद 
ब्राह्मणों के अंध समर्थन में 
मनुस्मृतिकार का लेखन लगता मनगढ़ंत 
मनुस्मृति के ऊट-पटाँग विधान से 
ब्राह्मण की प्रतिष्ठा का हुआ अंत 
ये मनुस्मृति का असर है कि 
ब्राह्मण जाति में होते पाखंडी साधु-संत
विष्णु ने बली रावण ने सीता इन्द्र ने 
कर्ण को छला बनकर ब्राह्मण! 
 
सनातन रक्षा हेतु अंतःकरण से 
मनुस्मृति के दुर्भाव का करें विसर्जन 
जो सुख सुविधा सम्मान तुम्हें चाहिए 
वही दूसरों के लिए करें सर्जन 
मन को निश्छल निर्मल कर लें 
ज़रूरत भर धन दौलत का करें अर्जन 
ना किसी का पैर किसी के सिर पर हो, 
सबके लिए हिय में हो स्पंदन 
हमसब एक वसुधा की कोख से जन्में 
आत्मवत करें सबका अभिनंदन! 

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