अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

ज्ञान है जैविक गुण स्वभाव जीव जंतुओं का

धन के लेन-देन से धन कभी नहीं बढ़ता है, 
मगर विचार आदान-प्रदान से ज्ञान बढ़ता है! 
 
अगर मुझको कोई एक पण अर्पण करता है, 
मैं एक पण देता, दोनों को एक पण होता है! 
 
मगर मैंने दिया है तुम्हें कोई एक समाचार, 
तुमने एक, दोनों के हो जाते दो दो विचार! 
 
ज्ञान औ धन में कभी भी तुलना नहीं होती, 
ज्ञान अतुलनीय, वस्तुएँ तुला में तौली जाती! 
 
कभी एक दूसरे का ज्ञान एक समान नहीं है, 
मगर एक दूसरे का धन एक समान सही है! 
 
हर पिता बाँटता धन बेटों को बराबर बराबर, 
दो जनों में ज्ञान बराबर बाँट सके ना ईश्वर! 
 
धन नहीं गुण धर्म संस्कार सजीव जीवों का, 
ज्ञान है जैविक गुण स्वभाव जीव-जंतुओं का! 
 
धन अन्न भोजन बिखरा पड़ा इस संसार में, 
पर ज्ञान आकार लेता आत्मा के व्यवहार में! 
 
धन को जो जीव जन्तु आत्मा में पकड़े होते, 
वैसे जीव हमेशा अमीरी ग़रीबी में जकड़े होते! 
 
आदमी के सिवा कोई जन्तु निर्धन नहीं होते, 
आदमी के सिवा कोई जन्तु कृपण नहीं होते! 
 
आदमी के सिवा कोई जीव धनसंग्रही न होते, 
आदमी के सिवा कोई जीव धन पे नहीं मरते! 
 
आदमी होके समस्त जीव जन्तुओं के हिस्से, 
गटक लेते, किश्त में बाँटने के गढ़ते क़िस्से! 
 
आदमी दानी होने का, झूठा छल प्रपंच करते, 
आदमी प्रकृति से हड़पे हुए धन पे अहं करते! 
 
आदमी होके आदमी के हक़ मार लिया करते, 
आदमी होके आदमी को धोखे-डर दिया करते! 
 
आदमी आदमी को रंग वर्ण जाति में बाँटकर, 
मारते काटते किसी आदमी को ख़ुदा बताकर! 
 
आदमी ने कोई लड़ाई आदमी हित नहीं लड़ी, 
आदमी ने सब लड़ाई सदा धन के लिए लड़ी! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं