ऐसा था गौतम बुद्ध संन्यासी का कहना
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Oct 2024 (अंक: 263, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
ऐसा था गौतम बुद्ध संन्यासी का कहना,
‘आरोग्य परमं लाभ:’ स्वास्थ्य ही है जीवन,
‘संतुष्टि परमं धनम्’ संतोष ही है परम धन,
विश्वास सबसे बड़ा बंधु; विश्वास आश्वासन,
निर्वाण प्राप्ति है सबसे बड़ा सुख को पाना!
ऐसा था गौतम बुद्ध संन्यासी का कहना,
शरीर की जरूरत है रोटी कपड़ा मकान पाना,
मन की आवश्यकता है गीत संगीत साहित्य,
आत्मा की चाहत चैतन्य हो मुक्त हो जाना,
देह-मन के फेर में आत्म चेतना ना भुलाना!
ऐसा था गौतम बुद्ध महाज्ञानी का मानना,
एक निर्धन कभी भी धार्मिक नहीं हो सकता,
‘भूखे भजन न होई गोपाला ले लो कंठीमाला’
एक निर्धनजन धन के लिए स्वधर्म बेच देता,
समृद्ध धन से धर्म की ओर गतिशील होता!
ऐसा था गौतम बुद्ध संन्यासी का आकलन,
निर्धन का पहला लक्ष्य होता है धर्म नहीं, धन
बुद्ध ने निर्धनता में देखा अंगुलीमाल सा मन
भारत का पड़ोसी अरब ईरान तुर्किए था निर्धन
जहाँ से लुटेरे आते रहे अंगुलीमाल जैसा दुर्जन!
ऐसा कहते थे वेद वेदांत ज्ञानी गौतम संन्यासी,
वेदना वेद से ही निकली बोधन है औ’ पीड़ा भी,
जहाँ वेदना होती वहाँ आत्म चेतना ठहर जाती,
वेद वेदना ना बने बुद्ध ने निकाली ऐसी युक्ति
आत्मज्ञान हेतु ज़रूरी है दैहिक वेदना से मुक्ति!
ऐसा है कि बुद्ध का भारतवर्ष सोने की चिड़िया थी,
हमसे हीन चीन, ईरान, यूनान, मिस्र, मेसोपोटामिया थी,
ख़ुद बुद्ध स्वर्ण मुकुट त्याग कर संन्यासी बने थे,
समृद्धि बड़ी थी, मगर भेदभाव पाखंड की घड़ी थी,
पशुबलि प्रधान वैदिकधर्म में विकृति आन पड़ी थी!
धन ऐश्वर्य समृद्धि हेतु गला काट प्रतिस्पर्धा थी,
पुत्र पिता-भ्राता की हत्या कर गद्दी हथिया रहे थे,
हर्यक राजवंश पितृहंता वैदिक अशोक भातृहंता थे,
पुरोहितवाद और निरंकुशता राजतंत्र की विपदा थी,
ऐसे तर्कवादी अहिंसक बुद्ध पर दुनिया फ़िदा थी!
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