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अहिंसावादी जैन धर्म वेदों से प्राचीन व महान है 

अहिंसावादी जैन धर्म वेदों से प्राचीन व महान है 
ऋग्वेद में प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव जी और 
बाईसवें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ का गुणगान है 
ऋषभदेव प्रथम स्वायंभुव मनु के पुत्र प्रियव्रत के 
पुत्र अग्नीन्ध्र पुत्र नाभिराज की ज्येष्ठ संतान हैं!
 
स्वायंभुव मनु के पुत्र प्रियव्रत व उत्तानपाद थे 
प्रियव्रत वंश में स्वारोचिष, उत्तम, तामस,रैवत, 
उत्तानपाद वंश में चाक्षुष ये छः मनु जन्म लिए 
ये छः मनु हैं प्राग्वैदिक मनुर्भरती सभ्यता के!
  
स्वायंभुव मनुवंश का मन्वन्तर सतयुग काल में
स्वायंभुव मनु ही मनुर्भरत कुल के संस्थापक थे 
ऋषभदेव पुत्र भरत के नाम से बना भारतवर्ष ये
दुष्यंत पुत्र भरत सातवें मनु वैवस्वत वंश के थे!
 
स्वारोचिष मन्वन्तर में मनुर्भरतों पर 
दक्षिण के महिषासुर शुम्भ-निशुम्भ और 
चण्ड-मुण्ड असुर सरदारों ने वार किए 
जो दुर्गा देवी से हार गए और मारे गए!
 
उत्तम मनु पुत्र तामस मनु,तामस मनु से 
ख्याति जानुजंघ शतह्य इस काल में हुए!
  
रैवत मन्वन्तर में तपसी विकुण्ठा पुत्र वैकुण्ठ तपसी ने
ईरान के देमावंद एलबुर्ज पर्वत शिखर पर वैकुण्ठ बसाए  
जो तपोरिया प्रांत में स्थित ईरानियन पैराडाइज़ कहलाए 
संप्रति तुर्कमेनिस्तान में वैकुण्ठ के खंडहर शेष बचे हुए!
 
चाक्षुष मन्वन्तर में उत्तानपाद पुत्र ध्रुव और उत्तम हुए 
चाक्षुष मन्वन्तर में ही मनुर्भरत कुल का विस्तार हुआ  
चाक्षुष पुत्र अत्यराति, जानंतपति, अभिमन्यु, तपोरत, उर,
पुर, उर पुत्र अंगिरा, ये ईरान के छः उपास्य देव कहलाए!
 
चाक्षुष मनु पुत्र अत्यराति वंशज ईरानी अर्राट कहे जाते 
अभिमन्यु की राजधानी ईरान के सुषानगर में थी, उर थे 
ईलाम के शासक; जो विजेता अफ्रीका सीरिया बेबीलोन के 
अब्राहम को मार भगाए, उराल पर्वत उर्राटवंश उर नाम से, 
उर के भाई पुर से पर्सिया, तपोरत से तमूरिया राज्य बसे
उर पुत्र अंगिरा ने पिता संग कुशद्वीप अफ्रीका जय किए!
 
चाक्षुष मन्वन्तर में ही वेन, पृथु, प्रचेतस, दक्ष प्रजापति हुए 
पृथु वैन्य से पृथ्वी संज्ञा, पृथु पृथ्वी के प्रथम राजा कहलाए
पृथु वैन्य काल में वेदोदय हुआ वे प्रथम मंत्रद्रष्टा ऋषि थे!
 
चाक्षुष मन्वन्तर में ही हुआ जल प्रलय, मेसोपोटामिया 
और उत्तर-पश्चिम एशिया का क्षेत्र हो गया था जलमय
ये मनुर्भरती सभ्यता वेदपूर्व की,आर्य जाति से अलग ही
आर्य जाति की स्थापना वैवस्वत मनु व उनके जमाता 
बुद्ध ने अपने-अपने पिता सूर्य और चन्द्र नाम से की!
 
ब्रह्मापुत्र मरीचि के कश्यप से सूर्योदय, अत्रि से चंद्रोदय
वैवस्वत ही थे सातवें मनु विवस्वान सूर्यपुत्र त्रेतायुग के 
सूर्य और चन्द्र दो आर्य संज्ञक कुल के जन्मदाता थे वे
वैवस्वत मनु से सूर्यकुल, वैवस्वत पुत्री इला से चंद्रकुल, 
राम हुए सूर्यपौत्र इक्ष्वाकु से, कृष्ण थे चंद्रपौत्र पुरुरवा से,
राम के गोत्र पिता थे कश्यप व कृष्ण के अत्रि ऋषि थे!
 
राम पूर्वज हरिश्चन्द्र रघु, कृष्ण पूर्वज यदु सहस्रार्जुन थे,
आरंभ में सूर्य व चन्द्र कुल था राजन्य क्षत्रिय क़बीला
जिसमें याजक से ब्राह्मण, विश से वैश्य शूद्र वर्ण चला,
फिर अनुलोम प्रतिलोम विवाह से अनेक जातियाँ बनी 
मगर वर्णभेद व जातिवाद से हुआ नहीं कुछ भी भला!
 
यज्ञ और पशुबलि से वैदिक ब्राह्मण धर्म चल निकला, 
वैदिक ब्राह्मण हिंसावादी, क्षत्रिय श्रमण अहिंसक योगी,  
वैदिक ब्राह्मणों ने श्रमण योगी राजन क्षत्रियों को छला
निर्दोष हरिश्चन्द्र पिता को वशिष्ठ ने त्रिशंकु बना डाला! 
 
याजक ब्राह्मण वशिष्ठ ने चंद्रवंशी राजर्षि विश्वामित्र व 
भार्गव ब्राह्मण परशुराम ने महायोगी राजन सहस्रार्जुन को 
एक जैसे आरोप गोहरण के बहाने लांछित किया व कुचला!
 
ब्राह्मणों ने क्षत्रिय चरित्र चित्रण में अपनाई कूटलेखन कला,
वैदिक ब्राह्मणों ने दुर्जन ब्राह्मण के विरूद्ध कुछ ना बोला,
पुलस्त्य पौत्र रावण थे वेदविकृतिकर्ता कृष्णयजुर्वेद रचयिता, 
पुलस्त्य परशुराम दुर्भिसंधी से सहस्रार्जुन के कैद से निकला!
 
परशुराम रावण के समकालीन सहस्रार्जुन सप्तद्वीप नौ खंड 
भारतवर्ष के सुदर्शन चक्रावतार चक्रवर्ती योगी प्रजापालक थे,
सती अनुसूइया-अत्रि पुत्र दत्तात्रेय महायोगी के भक्त अनुयाई,
जिन्हें मातृहंता परशुराम ने इक्कीस पीढ़ी सहित संहार डाला,
वैदिक ब्राह्मण धर्म में हिंसा बलि अभिशाप भेद-भाव बदला!
 
योगेश्वर गीता ज्ञानी कृष्ण थे तीर्थंकर अरिष्टनेमि के शिष्य,
अहिंसावादी, महाभारत रण में बेहथियार धर्मयुद्ध करनेवाला,
रणछोड़, शांति प्रस्तावक, अनावश्यक रक्तपात से बचनेवाला,
ऋषभदेव पुत्र भरत व बाहुबली सा असैनिक मल्लयुद्ध करके
दुर्जन मामा कंश व जरासंध को बिना खून-खराबे जीतनेवाला!
 
अस्तु ऋषभदेव से उद्भूत अहिंसक श्रमण जैन मुनि का धर्म  
जैसा का तैसा ऋषभदेव से महावीर तक कुछ भी नहीं बदला,
वृषभनाथ का जैन धर्म मोहनजोदड़ो-हड़प्पा में भी फला-फूला
उत्खनन में वृषभनाथ का प्रतीक शिव सा,चिह्न वृषभ मिला!
 
ऋषभदेव का विवाह हुआ था इन्द्र की कन्या जयंती से  
जिनसे उन्हें भरत और बाहुबली नामक दो सुपुत्र हुए थे 
संन्यास ग्रहण पूर्व ऋषभदेव ने भरत को अयोध्या का
और बाहुबली को दक्षिण भारत का साम्राज्य सुपुर्द किए!
 
दोनों भाई ने अहिंसक असैन्य जलयुद्ध मल्लयुद्ध किए
अंततः बाहुबली पिता स्थापित जैन धर्मी श्रमण बन गए
भरत ने उनकी मूर्ति बनवाई श्रमणबेलगोला कर्नाटक में!
 
ऋषभ जैनों के आदि तीर्थंकर होने के कारण से
आदिनाथ कहे जाते जिनके दाएँ पैर के अंगूठे में
पवित्र चिह्न वृषभ का लांक्षण अलंकार धारण से 
वे वृषभनाथ कहलाए जो विष्णु के अंशावतार थे!
 
बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ अरिष्टनेमि कहलाते थे 
जो श्रीकृष्ण के समकालीन उनके सगोत्री अग्रज थे 
ऋग्वेद में अर्हत जिन केवलिन केशी वातरशना व
मुनि कहकर जिन गुणीजनों की अभ्यर्थना की गई 
वे कोई और नहीं वृषभनाथ निर्ग्रंथ तीर्थंकर ही थे!
 
ऋषभदेव से अहिंसक जैन धर्म का शुभारंभ हुआ था 
ऋषभदेव विश्व के प्रथम मुनि हुए मौन व्रत धारण से,
मगर वैदिक ऋषि रिसियाते खिसियाते अभिशाप देते थे
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर वर्धमान महावीर जिन थे 
गौतम बुद्ध भी जैन परंपरा में शाक्य मुनि कहलाते थे!
 
स्वायंभुव मनुवंशी नाभिराज पुत्र ऋषभदेव ने प्रजा को 
षट्विद्याएँ; कृषि असि मसि शिल्प विद्या वाणिज्य और 
बहत्तर कलाओं का ज्ञान दान दिए थे, जबकि पुत्रीद्वय;
ब्राह्मी को लिपि ज्ञान, सुन्दरी को अंक विद्या सिखलाए
और पुत्रों को न्याय ज्योतिष आदि में निष्णात किए थे!
 
तीर्थंकर का तात्पर्य धर्म तीर्थ प्रवर्तक दिव्यात्मा पुरुषों से 
तीर्थंकर का अर्थ भवसागर पार उतरने की राह बतानेवाले
जो स्वयं निर्वाण प्राप्त करें व दूसरे को मोक्ष मार्ग बताए!
  
ऋषभदेव अयोध्या में जन्मे, कैलाश पर्वत पर निर्वाण पाए,
वासुपूज्य अंग मंदार पर्वत पर, नेमिनाथ गिरनार पर्वत पर,
महावीर पावापुरी में, शेष बीस तीर्थंकरों ने निर्वाण प्राप्त किए 
झारखंड के पवित्र निर्वाणभूमि पारसनाथ सम्मेद शिखर पर!
 
तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ से सम्मेद शिखर पारसनाथ बना 
पार्श्वनाथ काशीराज अश्वसेन-वामादेवी पुत्र नागवंशी क्षत्रिय थे 
आठ सौ सतहत्तर ईसा पूर्व में जन्मे सौ वर्ष में निर्वाण पाए 
पार्श्वनाथ सत्य अहिंसा अपरिग्रह और अस्तेय यानी अचौर्य 
इस चातुर्थी सिद्धांत के प्रतिपादक जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे
जिसमें महावीर ने ब्रह्मचर्य मिलाकर पांच महाव्रत कर दिए!
 
चौबीसवें तीर्थंकर महावीर पाँच सौ चालीस ईसा पूर्व काल में 
वैशाली के ज्ञातृक क्षत्रिय प्रमुख सिद्धार्थ-त्रिशला के लाल थे
हर्यकवंशी मगध सम्राट अजातशत्रु के मौसेरा भ्राता वैशाल वे
मिथकीय ऐतिहासिक क्षत्रिय शासक जैन बौद्ध धर्म पाल थे!
 
वर्धमान ने पारसनाथ पहाड़ी के ऋजुपालिका नदी तट पर 
जृम्भिक गाँव के चैतोद्यान में शाल वृक्ष नीचे कैवल्य पाए 
वे केवलिन, महावीर, अर्हत, निर्ग्रंथ, निगण्ठ, ज्ञातृपुत्र, वैशेली, 
काशव, श्रेयांस, नाटपुट्ट, जिन इत्यादि नामों से पुकारे गए!
 
महावीर ने मोक्ष प्राप्ति हेतु सम्यक ऋद्धा, सम्यक ज्ञान, 
सम्यक आचरण त्रिरत्न प्रदान किए चरित्र निर्माण के लिए,
महावीर कर्ता धर्ता संहारक ईश्वर को नहीं मानते थे, मगर 
आत्मा के अस्तित्व, जीवात्मा के आवागमन, कर्मफल मानते 
उन्हें विश्वास था सर्वदा है सर्वदा रहेगा ब्रह्माण्ड जगत ये!
 
जीव का आवागमन को कर्म-क्षय द्वारा रोका जा सकता 
इच्छाओं का निग्रह व्रत अभ्यास नियंत्रण से, कर्मांत होता,
त्याग त्याग सिर्फ त्याग इच्छा वासना कामना का त्याग, 
महावीर ने वस्त्र त्याग दिए, पार्श्वनाथ पक्षधर श्वेत चीर के 
मनसा वाचा कर्मणा मनुज अहिंसक हो जिन के कथन ये!
 
जिन ने मति श्रुति अवधि मनःपर्याय केवल ज्ञान बताए 
महावीर ने कहा वस्तु का यथार्थ ज्ञान सबके बस में नहीं 
यह संभव उनके लिए जिन्होंने शायद कैवल्य प्राप्त किए 
इसे स्यादवाद कहते, वस्तु सत्य पर सात राह से जा पाते
जिससे इसे सप्तभंगी सिद्धांत व अनेकान्तवाद भी कहते
ज्ञान के तीन स्रोत प्रत्यक्ष अनुमान व तीर्थंकर वचन होते!
 
जैन बौद्ध सिख धर्म क्षत्रिय राजपुत्रों से उद्भूत तर्कवादी 
जो वैदिक कर्मकाण्ड नहीं उपनिषद गीता सद्वचन मानते
जैन दर्शन आगम में संकलित है, वैदिक ज्ञान निगम में,
चौबीस तीर्थंकर एक बुद्ध दस गुरु क्षत्रिय कोख से जन्मे 
वैदिक ब्राह्मण धर्म से भेदभाव जातिवाद मिटाने वे चले!

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