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आयु निर्धारण सिर्फ़ जन्म नहीं मानसिक आत्मिक स्थिति से होती 


मानव की आयु का निर्धारण 
सिर्फ़ जन्म नहीं मानसिक स्थिति
और आत्मा के पूर्व जन्मों से 
संगृहीत ज्ञान व यादाश्त से होती! 
 
सब मानव समकालीन होते समकाल में 
एक साथ आत्मा की सदेह उपस्थिति से 
चाहे कोई उम्र से बालक हो या युवक हो 
या वृद्धावस्था में ही क्यों ना आ गए हों! 
 
सृष्टि के आरंभ से 
परमात्मा की उपस्थिति के साथ ही 
इस ब्रह्माण्ड में जन्म जन्मांतर से
भटकती आत्माएँ भी उपस्थित होती! 
 
जन्म पुनर्जन्म लेती हुईं 
वर्तमान में देह धारण करती हुईं 
सभी शरीरी आत्माएँ उम्र में बराबर होतीं! 
 
मगर मानसिक परिपक्वता
और संचित ज्ञान की उपलब्धता से 
देहधारी की अवस्था अलग-अलग होती! 
 
ऐसे में मानसिक स्तर पर कोई बालक
अपने पिता से अधिक परिपक्व हो सकता
जन्मों-जन्मों के सँजोए हुए ज्ञान के कारण 
बालक अपने पिता से अधिक वयोवृद्ध होता! 
 
नचिकेता व अष्टावक्र ऐसे ही बालक थे
जिनकी मानसिक अवस्था व आत्मिक स्थिति 
अपने पिता से अधिक परिपक्व व उम्रदराज़ थी! 
 
बालक अभिमन्यु व गुरु गोविंद सिंह की मनोदशा, 
आत्मिक उच्चता अपने पिता से तनिक कम नहीं थी, 
मातृकोख में ही गर्भस्थ शिशु अष्टावक्र व अभिमन्यु 
निज पिता के ताउम्र अर्जित ज्ञान के हो गए थे गुणग्राही! 
 
नौ वर्षीय बालक नचिकेता व दशमेश पिता गोबिंद ने 
अल्पायु में ही अपने पिता को धार्मिक सद्ज्ञान दिया, 
नचिकेता ने यम से जन्म मृत्यु का रहस्य जान लिया, 
गुरु गोबिंद ने नवधर्म सृजित कर मानव को एक किया! 
 
कृष्ण छवि समकालीन मानवों के बीच परमज्ञानी की थी, 
वयोवृद्ध भीष्म पितामह भी नतमस्तक थे कृष्ण के समक्ष, 
कृष्ण वैसे कोख से आए जो हमेशा रट लगाए थी ईश्वर की, 
कृष्ण आत्मा से महात्मा फिर परमात्मा होने की स्थिति थी! 

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