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मनुष्य प्रभाव से प्रभावित होता अच्छा बुरा बर्ताव करता

 

मनुष्य हमेशा भाव में रहता 
मनुष्य अभाव में आकर स्वभाव बदलता 
मनुष्य प्रभाव से प्रभावित होता 
अच्छा बुरा बर्ताव करता दुर्भाव पालता
मनुष्य दुर्भाव से सबका अहित कर देता 
मनुष्य किसी न किसी प्रभाव से
अपना स्वभाव हावभाव में बदलाव करता! 
 
मनुष्य में मनुष्यता का 
सर्वोत्तम भाव अब तक नहीं जगा 
मनुष्य ने मनुष्य में जाति धर्म की 
दीवार खड़ा करके स्वयं को ठगा 
 
मनुष्य को मनुष्य बनाने का 
प्रयास ‘मनुर्भवः’ बहुत किया गया 
किन्तु मनुष्य ने मनुष्य बनने का 
गुण अबतक नहीं जुटा पाया! 
 
मनुस्मृति के 
‘अतिथि देवो भवः’ का प्रभाव ये
कि सनातनी अतिथि का 
आवभगत करते बड़े ही चाव से 
 
‘सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् 
न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम्’ के प्रभाव से 
सनातनी मनुष्य सत्य बोलता 
पर असत्य छिपाता कोर्ट में झूठी गवाही देता! 
 
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ का 
प्रभाव ऐसा है कि सनातन धर्म में 
पराई नारी माँ बहन बेटी समझी जाती माता 
 
फिर भी नारी जाति दुष्ट राक्षसों से 
रक्षणीय तबतक नहीं हो पाती 
जबतक पिता पति पुत्र नारी का 
आजीवन बना नहीं रहता आश्रयदाता! 
 
मनुष्य नक़लची होता 
जैसा सुनेगा वैसा गुनेगा भेड़चाल चलेगा
जब ख़ुद की हानि हो जाती 
तब सिर धुनेगा हाथ मलेगा नहीं बदलेगा
 
मनुज कम प्रयत्न में अधिक 
फल चाहता सफल नहीं विफल हो जाता
मनुष्य बिना कर्म किए ही 
भाग्य आज़माता और धोखा खा जाता! 
 
मनुज की ये अजब अदा ख़ुदा-ख़ुदा गुहारता, 
हमेशा इंसा अल्लाह कहता राम राम करता
पर माँ पिता को जीते जी धिक्कारता 
जब ग़ैर में पड़ जाता तो गधे को बाप कहता 
ईश्वर अल्लाह को सिरे से भूल जाता
 
भाई-भाई से आजीवन मुँह फुलाता, 
मृत्यु के बाद ‘राम नाम सत्य है’ सुनाने आता
बहन भी अजीब जीव होने लगी 
भाई की औक़ात देखकर राखी बाँधने जाती! 
 
मनुष्य जो गुण पाता 
माता-पिता आनुवंशिकता से कम ही पाता
मगर हुड़दंगी साथी संगी 
शैतान की शैतानी को शीघ्र ग्रहण कर लेता
  
मनुष्य माँ से दया ममता
पिता से सत्य अहिंसा अनुशासन पाता 
मगर ग़लत मत सोहबत में पड़कर 
झटके से दुःशासन हो जाता! 
 
जातिवाद कहाँ से आया? 
थोड़ा-बहुत माँ-पिता संबंधी ने सिखलाया 
बहुत ज़्यादा सुनी सुनाई 
दक़ियानूसी किताबी वार्ता बर्ताव से आया 
 
नस्लीय भेदभाव की रीति फ़िरकापरस्ती 
दुराचारी प्रवृत्ति कहाँ से आई? 
कुछ-कुछ माँ-बाप वंश मूल से, 
बहुत कुछ पूजा पद्धति की कुरीति ने सिखाई! 
 
मनुष्य की योनि पशुओं की तरह 
विरासती और ज्ञानी नहीं होती 
पशु योनि घ्राण श्रवण दृष्टि शक्ति से 
जाति विजाति पर आनेवाली विपदा पहचान लेती 
 
मनुष्य कहने को ज्ञानी प्राणी है
मगर बिना शिक्षा अभ्यास बेअक्ल अज्ञानी है
जहाँ एक नस्ल के जीव पशु-पक्षी एक सा होते 
पर एक घर के एक जोड़ी माँ पिता से जन्मे 
मनुष्य होते अलग-अलग रंग के गुणी-दुर्गुणी! 
 
मनुष्य की ख़ासियत है 
लोभ लालच मत्सरी चोरी बेईमानी हकमारी 
भाई-भाई भाई-बहन में घृणा द्वेष जलन, 
धन के कारण होती यारी मनमुटाव की बीमारी
 
मनुष्य द्वारा अर्जित सारी विद्या बुद्धि, 
झूठी प्रशंसा सुन कर चुक जाती 
मनुष्य भले बुरे की पहचान नहीं कर पाता 
धिक्-धिक् है मनुष्य की जाति! 
 
वर्तमान लोकतंत्र धर्मनिरपेक्ष संविधान से 
कहीं अच्छा था बौद्ध विहार गुरुकुल युक्त राजतंत्र 
जिसमें राजपुरुषों को अवश्य पढ़ाए जाते थे राजधर्म वृत्ति 
बुद्ध वाणी आगम निगम श्रुति स्मृति अष्टावक्र कृष्ण गीता 
विदुर नीति भीष्म युधिष्ठिर वार्ता अर्थशास्त्र चाणक्य नीति 
 
मगर आज का संविधान 
अनपढ़ जाहिल को अवसर प्रदान कर देता 
जनता का भाग्य विधाता विधि निर्माता होने का 
जो ज्ञानी कम दुर्जन अभिमानी अधिक होता 
 
राजनेता दल बदलते ही चरित्र बदल लेता 
जरदगव गिद्ध सा झूठ फैलाता छल करता
बारी-बारी से सबका अंडा चूज़ा बच्चा खा जाता
लोकतंत्री नेता से लाज लजाती, मानवता लापता! 

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